वैश्विक सूखा संकट: 2035 तक लागत में 35% वृद्धि का अनुमान

वैश्विक सूखा संकट: 2035 तक लागत में 35% वृद्धि का अनुमान

जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण सूखा अब एक अस्थायी आपदा नहीं रह गया है, बल्कि यह विश्वव्यापी सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक संकट का रूप ले चुका है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की 17 जून 2025 को प्रकाशित रिपोर्ट OECD Global Drought Outlook: Trends, Impacts and Policies to Adapt to a Drier World के अनुसार, 2035 तक एक औसत सूखे की लागत आज की तुलना में कम से कम 35% अधिक हो जाएगी।

कृषि पर सबसे अधिक प्रभाव

सूखे का सबसे गंभीर प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ता है। विशेष रूप से शुष्क वर्षों में फसल उत्पादन में 22% तक की गिरावट देखी गई है। यह गिरावट खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे वैश्विक खाद्य मूल्य अस्थिर होते हैं और ग्रामीण गरीबी गहराती है।

वैश्विक स्तर पर सूखे की बढ़ती आवृत्ति

रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले कुछ दशकों में पृथ्वी की 40% भूमि पर सूखे की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ी है। वर्ष 2023 में, विश्व की 48% भूमि ने कम से कम एक माह तक अत्यधिक सूखा अनुभव किया — यह 1951 के बाद दूसरा सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। प्रमुख प्रभावित क्षेत्र हैं: अमेरिका का पश्चिमी भाग, दक्षिण अमेरिका, दक्षिणी और पूर्वी यूरोप, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी और दक्षिणी अफ्रीका, और रूस।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2035 तक औसत सूखे की लागत में 35% वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
  • 1980 से अब तक वैश्विक भूमि का 37% हिस्सा महत्वपूर्ण मृदा नमी की हानि झेल चुका है।
  • 62% भूजल स्रोत (aquifers) वैश्विक स्तर पर गिरावट की स्थिति में हैं।
  • सूखा आपदाओं से जुड़ी मौतों में 34% योगदान देता है।

बहुआयामी प्रभाव और समाधान के रास्ते

सूखा केवल कृषि ही नहीं, बल्कि व्यापार, उद्योग, ऊर्जा उत्पादन और पारिस्थितिकी तंत्रों को भी प्रभावित करता है। जल की उपलब्धता में गिरावट से नदियों का प्रवाह घटा है और कई वन, आर्द्रभूमियाँ तथा जैव विविधता संकट में हैं। यह आवश्यक पारिस्थितिकी सेवाओं जैसे जल शुद्धिकरण और कार्बन अवशोषण को बाधित करता है।
OECD ने व्यापक नीति समाधानों का सुझाव दिया है:

  • जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन तकनीकों को अपनाना।
  • सूखा-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएं बनाना।
  • जल-कुशल सिंचाई प्रणालियों का व्यापक प्रसार।
  • सतत भूमि उपयोग और पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन को प्राथमिकता देना।

रिपोर्ट ने चेताया कि यदि देश शीघ्र और एकीकृत रणनीतियों को नहीं अपनाते, तो सूखा भविष्य में न केवल पर्यावरणीय, बल्कि मानवीय आपदा का कारण बन सकता है। प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, जल प्रबंधन में नवाचार और सामाजिक समावेशिता के साथ तैयार की गई नीतियां ही इस संकट का स्थायी समाधान हो सकती हैं।
अब समय है, जब विश्व को सतर्क होकर सक्रिय रूप से सूखे के बढ़ते खतरे से निपटने की दिशा में कार्य करना चाहिए, ताकि पर्यावरणीय स्थिरता और मानव कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके।

Originally written on June 28, 2025 and last modified on June 28, 2025.

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