वैश्विक व्यवस्था में बदलाव: भारत और ईरान की प्राचीन सभ्यताएं नेतृत्व की ओर

वर्तमान विश्व एक गहरे परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। इसे कुछ लोग “संक्रमण का समय” कहते हैं, जबकि अन्य इसे “पश्चिमी नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का संकट” मानते हैं। जो बात स्पष्ट है, वह यह कि लंबे समय से अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों द्वारा नियंत्रित वैश्विक प्रणाली अब गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।
पश्चिमी वर्चस्व की गिरावट
अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन, बल प्रयोग, व्यापार युद्ध, वैश्विक संस्थाओं की अनदेखी, मीडिया का दुरुपयोग और पर्यावरण का विनाश — ये सभी घटनाएं महज संयोग नहीं, बल्कि एक गहरे ढांचे के विघटन का संकेत हैं। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिम अब वैसी निर्णायक भूमिका में नहीं है, जैसी पहले थी। विज्ञान, तकनीक, वित्तीय तंत्र, मानवाधिकार की परिभाषाएं और वैश्विक मीडिया पर उसका वर्चस्व अब कमजोर पड़ रहा है।
वैश्विक दक्षिण का उदय
इस पृष्ठभूमि में वैश्विक दक्षिण (Global South) के देश अब एक नई राह पर अग्रसर हैं। ये देश अब अधीनता या भेदभाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। अपनी स्वदेशी तकनीक, रक्षा क्षमताओं और स्थानीय विकास मॉडलों पर भरोसा करते हुए ये राष्ट्र स्वतंत्रता की ओर बढ़ रहे हैं।
भारत और ईरान: सभ्यतागत साझेदारी
भारत और ईरान, दुनिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताएं, इस परिवर्तन में विशेष स्थान रखती हैं। ये दोनों सभ्यताएं शांति की पक्षधर रही हैं, युद्ध से दूर रहीं और केवल आत्मरक्षा में संघर्ष किया। इनकी सांस्कृतिक विरासत इतनी गहरी रही कि विजय पाने वाले भी इनके मूल्यों से प्रभावित होकर बदल गए।
इस्लाम के आगमन के बाद, ईरान की सांस्कृतिक परंपराएं नई रूप में आगे बढ़ीं, जबकि भारत — विश्व की सबसे पुरानी सतत सभ्यता — ने इस्लामी प्रभाव से और भी समृद्धि प्राप्त की। दोनों सभ्यताओं में जीवन को वरदान मानने, अच्छाई की जीत में विश्वास रखने, विविधता के सम्मान, आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति जैसे मूल्य आज भी जीवंत हैं।
आधुनिक संघर्षों में साझा योगदान
भारत ने जहां उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया, वहीं ईरान ने अपने तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण और इस्लामी क्रांति के ज़रिए पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध किया। इन दोनों देशों ने अपने स्वाभिमान और पहचान को कभी कुर्बान नहीं किया, चाहे उस कीमत पर प्रतिबंध और हस्तक्षेप क्यों न झेलना पड़ा हो।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत और ईरान प्राचीनतम जीवित सभ्यताओं में शामिल हैं।
- भारत ने NAM (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) का नेतृत्व किया और ईरान ने तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध किया।
- दोनों देशों ने BRICS और INSTC (इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर) जैसे मंचों पर सहयोग को बल दिया।
- भारत ने अपने अधिकांश जनधन खातों महिलाओं के नाम पर खोले, जबकि ईरान ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग का अधिकार कायम रखा।
भविष्य की ओर: न्याय आधारित व्यवस्था की ओर कदम
आज जब पश्चिमी ढांचा टूट रहा है, तब भारत और ईरान जैसे सभ्यतागत राष्ट्र एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकते हैं — ऐसा वैश्विक आदेश जो न्याय, सहभागिता, आत्मनिर्भरता और सम्मान पर आधारित हो।
इस क्रम में फिलिस्तीन का संघर्ष, पश्चिमी पाखंड और वर्चस्ववाद की सबसे तीव्र अभिव्यक्ति बनकर उभरता है। ईरान की शांतिपूर्ण परमाणु नीति, भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, और BRICS जैसी संस्थाएं उस भविष्य की नींव हैं जहां देशों को सिर्फ सामर्थ्य नहीं, बल्कि नैतिकता के आधार पर आंका जाएगा।