वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक 2025 में भारत की गिरावट: महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी क्यों बनी बड़ी चुनौती?

भारत वर्ष 2025 में विश्व आर्थिक मंच (WEF) के “वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक” में दो स्थान नीचे खिसककर 148 देशों में 131वें स्थान पर पहुंच गया है। यह गिरावट खासकर “राजनीतिक सशक्तिकरण” के क्षेत्र में खराब प्रदर्शन के कारण हुई है, जबकि आर्थिक भागीदारी, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े सूचकांक में स्थिति स्थिर या बेहतर रही है।

राजनीतिक सशक्तिकरण में गिरावट क्यों?

राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए तीन प्रमुख संकेतकों का उपयोग किया गया है, जिनमें भारत ने दो में गिरावट दर्ज की:

  • लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या: 2024 में 14.7% (78 सांसद) से घटकर 2025 में 13.79% (74 सांसद) रह गई।
  • मंत्री पदों पर महिलाओं की भागीदारी: 2024 में 6.45% से घटकर 2025 में मात्र 5.56% हो गई।

हालांकि महिलाओं की मतदान में भागीदारी बढ़ी है, लेकिन सत्ता के उच्चतम स्तरों पर उनकी भागीदारी अभी भी बहुत कम बनी हुई है।

महिला आरक्षण से क्या बदलेगा?

2023 में पारित 33% महिला आरक्षण विधेयक 2029 से लागू होगा, जब जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होगी। यह आरक्षण लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या में भारी वृद्धि ला सकता है।

  • 2019 में लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी 14% थी।
  • राज्यों में औसतन 9% महिला विधायक हैं; कुछ राज्यों में यह आंकड़ा बहुत कम है।

हालांकि, यह आरक्षण केवल 15 वर्षों तक प्रभावी रहेगा — जिससे यह चिंता बनी हुई है कि इस बदलाव के लंबे समय तक टिके रहने की क्या गारंटी है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक 2025 में भारत की रैंक: 131 (148 देशों में)
  • 2025 में लोकसभा में महिला सांसद: 74 (13.79%)
  • 2025 में महिला मंत्री: 5.56%
  • 2023 महिला आरक्षण विधेयक प्रभाव: 2029 से, 33% आरक्षण, 15 वर्षों तक लागू
  • पंचायतों में महिला आरक्षण: अधिकांश राज्यों में 50% तक

महिला मतदाता बनाम महिला प्रत्याशी

1952 में जहां लाखों महिलाओं को मतदाता सूची में उनके नाम से नहीं, बल्कि किसी की पत्नी या माता के रूप में दर्ज किया गया था, आज महिलाओं की मतदान भागीदारी पुरुषों से भी अधिक हो गई है।

  • 2014 में महिला-पुरुष मतदाता अंतर दो प्रतिशत से भी कम था।
  • हाल के चुनावों में कई राज्यों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया।

इसके बावजूद, महिला प्रत्याशियों की संख्या बढ़ी नहीं है। राजनीतिक दल अक्सर जीत की संभावना को बहाना बनाकर महिलाओं को प्रत्याशी बनाने से बचते हैं।

कैसे बढ़ेगी महिला भागीदारी?

विशेषज्ञों के अनुसार, हर आम चुनाव में महिला प्रत्याशियों की जीतने की संभावना पुरुषों से अधिक रही है, लेकिन वे उम्मीदवार सूची में ही नहीं पहुंच पातीं।

  • मान्यता प्राप्त दलों में महिला उम्मीदवारों का औसत: 8-9% ही रहता है।
  • स्थानीय निकायों में आरक्षण के बावजूद राज्यों या संसद तक नेतृत्व की निरंतरता नहीं बन पाई है।

राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे महिलाओं को सुरक्षित सीटों के अलावा भी प्रत्याशी बनाएं और उन्हें वास्तविक प्रशासनिक भूमिकाओं में भी नियुक्त करें।

निष्कर्ष

भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में सुधार के संकेत तो हैं — जैसे महिला आरक्षण विधेयक — लेकिन असली चुनौती यह सुनिश्चित करने की है कि यह परिवर्तन सतही न होकर स्थायी और समावेशी हो। अगर राजनीतिक दल और सरकारें इस दिशा में गंभीर कदम उठाएं, तो भारत वैश्विक स्तर पर महिला सशक्तिकरण के मामले में एक उदाहरण बन सकता है।

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