वैश्विक उत्सर्जन में फिर वृद्धि: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बनी सबसे बड़ी चुनौती

2025 की पहली छमाही में विश्वभर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि पावर सेक्टर से उत्सर्जन में गिरावट आई। यह विरोधाभास दर्शाता है कि जब तक जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) पर वैश्विक निर्भरता नहीं घटेगी, तब तक स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में प्रगति सीमित रहेगी।
वैश्विक आंकड़े: उत्सर्जन में 0.13% की वृद्धि
- Climate TRACE द्वारा 28 अगस्त, 2025 को जारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से जून 2025 के बीच वैश्विक उत्सर्जन 31 बिलियन टन CO₂e तक पहुंच गया — 2024 की समान अवधि की तुलना में 0.13% अधिक।
- केवल जून में ही वैश्विक उत्सर्जन 5.12 बिलियन टन CO₂e रहा, जो जून 2024 से 0.29% अधिक है।
- मीथेन उत्सर्जन भी बढ़कर 34.82 मिलियन टन हो गया — 0.49% की वृद्धि।
भारत की भूमिका: मिश्रित संकेत
- भारत के पावर सेक्टर से उत्सर्जन में 0.8% की गिरावट दर्ज की गई, जो एक सकारात्मक संकेत है।
- परंतु कुल मिलाकर, भारत का उत्सर्जन 0.21% बढ़ा, जिससे 4.44 मिलियन टन CO₂e अतिरिक्त उत्सर्जन हुआ।
अमेरिका की बड़ी हिस्सेदारी
- अमेरिका ने अकेले 48.57 मिलियन टन CO₂e उत्सर्जन बढ़ाया — 1.43% की वृद्धि, जो वैश्विक वृद्धि का सबसे बड़ा हिस्सा है।
- यह दिखाता है कि अमेरिका अभी भी तेल, गैस और कोयले पर अत्यधिक निर्भर है।
उत्सर्जन वृद्धि के अन्य स्रोत
- जीवाश्म ईंधन संचालन से उत्सर्जन में 1.5% (77.65 मिलियन टन CO₂e) की वृद्धि हुई।
- उद्योग/निर्माण क्षेत्र से उत्सर्जन में 0.3% (18.75 मिलियन टन) की वृद्धि हुई, मुख्यतः भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया और ब्राज़ील से।
पावर सेक्टर में सुधार
- विश्व स्तर पर पावर सेक्टर से उत्सर्जन में 60.27 मिलियन टन की गिरावट हुई।
- चीन ने 1.7% की गिरावट दर्ज की — सबसे बड़ा योगदान।
अंतरराष्ट्रीय चेतावनी और कानूनी राय
- International Court of Justice ने हाल ही में कहा कि यदि कोई सरकार जीवाश्म ईंधन उत्पादन, उपभोग, लाइसेंसिंग या सब्सिडी को नहीं रोकती है, तो यह “अंतरराष्ट्रीय रूप से गलत कार्य” माना जा सकता है।
- IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, अगर 1.5°C तापमान सीमा को पाना है, तो उत्सर्जन को 2025 तक शिखर पर लाकर 2030 तक 43% तक घटाना अनिवार्य है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Climate TRACE एक वैश्विक गठबंधन है जिसमें AI विशेषज्ञ, शोधकर्ता और पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर शामिल हैं।
- CO₂e (Carbon dioxide equivalent) ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को एक मानक रूप में मापने की इकाई है।
- SSP 5-8.5 जलवायु परिदृश्य, अत्यधिक उत्सर्जन और न्यूनतम जलवायु नीति पर आधारित है।
- IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक अध्ययन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था है।
जलवायु संकट की गंभीरता अब और अधिक स्पष्ट है। भारत जैसे देश, जिन्होंने पावर सेक्टर में उत्सर्जन घटाया है, को अब अन्य क्षेत्रों में भी कठोर नीतिगत निर्णय लेने होंगे। वहीं, वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन की लत पर नियंत्रण पाना अब समय की सबसे बड़ी मांग है।