वेस्ट-टू-एनर्जी कार्यक्रम के संशोधित दिशानिर्देश: स्वच्छ ऊर्जा और उद्योगों को नई ऊर्जा

भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम के अंतर्गत “वेस्ट-टू-एनर्जी (WtE)” कार्यक्रम के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन बदलावों का उद्देश्य भारत में जैविक कचरे से ऊर्जा उत्पादन को पारदर्शी, प्रदर्शन-आधारित और व्यवसाय-अनुकूल बनाना है। विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ध्यान में रखते हुए प्रक्रियाओं को सरल और वित्तीय सहायता तंत्र को लचीला बनाया गया है।
प्रक्रियाओं में सरलीकरण और व्यवसाय में सहूलियत
नए ढांचे के अंतर्गत अनुमोदन प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है, कागजी कार्यवाही घटाई गई है और वित्तीय सहायता की प्रक्रिया को तेज किया गया है। इससे बायोगैस, संपीड़ित बायोगैस (CBG) और विद्युत उत्पादन करने वाली इकाइयों को समय पर सहायता प्राप्त होगी। यह कदम कृषि अवशेषों, औद्योगिक कचरे और ठोस अपशिष्ट के कुशल प्रबंधन में सहायक सिद्ध होगा।
प्रदर्शन आधारित वित्तीय सहायता तंत्र
पूर्व में वित्तीय सहायता केवल तब ही मिलती थी जब संयंत्र 80% क्षमता पर प्रदर्शन करता था। अब नए नियमों के तहत, कुल CFA का 50% ‘कंसेंट टू ऑपरेट’ प्रमाणपत्र मिलने के बाद बैंक गारंटी के आधार पर जारी किया जाएगा। शेष CFA संयंत्र के 80% प्रदर्शन (या अनुमोदित अधिकतम सीमा, जो भी कम हो) प्राप्त करने पर मिलेगा। यदि संयंत्र पूर्ण क्षमता नहीं भी प्राप्त कर सके, तो आउटपुट के आधार पर अनुपातिक (प्रो-राटा) सहायता प्रदान की जाएगी। हालांकि यदि संयंत्र 50% से कम प्रदर्शन करता है, तो कोई CFA नहीं दी जाएगी।
निरीक्षण प्रक्रिया में पारदर्शिता और लचीलापन
परियोजना निरीक्षण को और अधिक विश्वसनीय व पारदर्शी बनाने हेतु अब संयुक्त निरीक्षण अनिवार्य किया गया है, जिसमें MNRE के अधीनस्थ संस्थान सौर ऊर्जा संस्थान (SSS-NIBE) के प्रतिनिधियों के साथ राज्यीय नोडल एजेंसी, बायोगैस तकनीक विकास केंद्र या MNRE द्वारा पंजीकृत किसी भी एजेंसी को शामिल किया जाएगा। जिन डेवलपर्स ने अग्रिम CFA नहीं लिया है, उनके लिए केवल एक बार का प्रदर्शन निरीक्षण पर्याप्त होगा। साथ ही, CFA दावा करने की समय-सीमा अब चालू होने की तारीख से या ‘इन-प्रिंसिपल अप्रूवल’ की तारीख से 18 महीने तक रखी गई है — जो भी बाद में हो।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- वेस्ट-टू-एनर्जी (WtE): जैविक व ठोस कचरे को बायोगैस, CBG या बिजली में परिवर्तित करने की प्रक्रिया।
- SSS-NIBE: श्री सौर ऊर्जा संस्थान – MNRE का स्वायत्त संस्थान जो बायो-एनर्जी प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता रखता है।
- CFA (Central Financial Assistance): केंद्र सरकार द्वारा स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता।
- PLF (Plant Load Factor): संयंत्र की परिचालन क्षमता का प्रतिशत, जो इसके कुल स्थापित क्षमता के सापेक्ष मापा जाता है।
इन संशोधनों से वेस्ट-टू-एनर्जी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा, परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता में सुधार होगा और भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य के अनुरूप अपशिष्ट प्रबंधन को नई गति मिलेगी। यह पहल निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के लिए व्यापारिक दृष्टिकोण से अनुकूल और टिकाऊ समाधान प्रस्तुत करती है।