वन अधिकार अधिनियम (FRA) को लागू करने की नई पहल: केंद्र की सीधी भूमिका और उभरे सवाल

वन अधिकार अधिनियम (FRA) को लागू करने की नई पहल: केंद्र की सीधी भूमिका और उभरे सवाल

वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) के लागू होने के 19 वर्षों बाद पहली बार केंद्र सरकार ने इसके क्रियान्वयन के लिए संरचनात्मक तंत्र को वित्तीय सहायता देना शुरू किया है। यह कदम धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (DAJGUA) के अंतर्गत उठाया गया है, जिसके माध्यम से 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 324 जिला स्तर की FRA इकाइयों की स्थापना को मंजूरी दी गई है।

FRA के तहत अब तक की व्यवस्था

FRA के अनुसार, इसकी क्रियान्वयन जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है, जिसमें ग्राम सभा स्तर पर वन अधिकार समिति (FRC), उप-मंडलीय और जिला स्तरीय समितियाँ तथा राज्य निगरानी समिति गठित की जाती हैं। यह ढांचा कानून द्वारा निर्धारित है और अब तक केंद्र की भूमिका मुख्यतः प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और आंकड़ा संग्रहण तक सीमित रही है।

DAJGUA के अंतर्गत नया हस्तक्षेप

DAJGUA के तहत गठित FRA इकाइयाँ राज्य सरकारों की प्रशासनिक निगरानी में कार्य करेंगी, लेकिन इन्हें केंद्र सरकार “Grants-in-aid General” के माध्यम से वित्तीय सहायता दे रही है। इन इकाइयों का कार्य ग्राम सभाओं और दावेदारों को दस्तावेज तैयार करने, दावों के लिए सबूत एकत्र करने, ग्राम सभा प्रस्ताव संकलन, रिकॉर्ड डिजिटलीकरण, और पुराने दावों की प्रगति में सहायता करना होगा।

कार्यक्षमता और आलोचनाएं

सरकार का दावा है कि ये FRA इकाइयाँ किसी भी प्रकार से ग्राम सभा या समितियों के निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगी, बल्कि केवल सहायता प्रदान करेंगी। परंतु अधिकार कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक समानांतर ढांचे का निर्माण कर रहा है जो FRA की मूल संरचना से बाहर है।
वन अधिकार शोधकर्ता तुषार डैश का कहना है कि अनेक कार्य जो इन इकाइयों को सौंपे गए हैं, वे पहले से ही वैधानिक समितियों की जिम्मेदारी में आते हैं, जिससे जमीनी स्तर पर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उनका कहना है कि असली समस्या यह है कि उप-मंडलीय और जिला स्तरीय समितियाँ नियमित रूप से नहीं बैठतीं, जिससे दावे लंबित रहते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • FRA अधिनियम 2006 अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वनवासी समुदायों को वनभूमि पर अधिकार देता है।
  • भारत में अब तक 51.11 लाख FRA दावे दायर हुए हैं, जिनमें से 14.45% अभी भी लंबित हैं।
  • सबसे अधिक FRA इकाइयाँ मध्य प्रदेश (55), छत्तीसगढ़ (30), तेलंगाना (29), महाराष्ट्र (26), असम (25), और झारखंड (24) में स्वीकृत की गई हैं।
  • असम और तेलंगाना में दावों की लंबित दर क्रमशः 60% और 50.27% है।
Originally written on June 14, 2025 and last modified on June 14, 2025.

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