लोकतक झील की बिगड़ती स्थिति: नागालैंड विश्वविद्यालय के अध्ययन की चेतावनी
मणिपुर की प्रसिद्ध लोकतक झील, जो अपनी अनोखी ‘फुमदी’ (Meitei भाषा में तैरती वनस्पति) के लिए जानी जाती है, अब पर्यावरणीय संकट की स्थिति में पहुंच रही है। नागालैंड विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की शोधकर्ता एलिजा ख्वैरकपम द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन ने इस चिंता को उजागर किया है। यह झील केवल जैव विविधता के लिए ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका, पर्यटन, और ऊर्जा संसाधनों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भूमि उपयोग में बदलाव और जल प्रदूषण
अध्ययन के अनुसार, खेती, बस्तियों और झूम खेती जैसे भूमि उपयोग के प्रकारों में बढ़ोत्तरी के कारण झील को पोषण देने वाली नदियों की जल गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। ख्वैरकपम ने झील की जलग्रहण क्षेत्र में बहने वाली नौ प्रमुख नदियों — खूगा, वेस्टर्न, नंबुल, इंफाल, कोंगबा, इरिल, थौबाल, हीरोक और सेकमै — में जल सैंपलिंग कर यह निष्कर्ष निकाला।
इन क्षेत्रों में भूमि उपयोग और जल गुणवत्ता के सूचकों — जैसे घुलित ऑक्सीजन, जैविक ऑक्सीजन मांग और तापमान — के बीच सीधा संबंध पाया गया। विशेष रूप से नंबुल नदी, जो 47% कृषि भूमि और 11% बस्ती क्षेत्र से प्रभावित है, सबसे अधिक प्रदूषित पाई गई। वहीं, झूम खेती की उच्च उपस्थिति (42%) के कारण खूगा नदी की स्थिति भी चिंताजनक है।
वन आच्छादन की भूमिका और प्राकृतिक संरक्षण
अध्ययन में यह भी देखा गया कि जिन नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में घने वन हैं — जैसे इरिल और थौबाल — उनकी जल गुणवत्ता तुलनात्मक रूप से बेहतर है। यह दर्शाता है कि प्राकृतिक वनस्पति जल संरक्षण में एक सुरक्षात्मक भूमिका निभाती है। इससे स्पष्ट होता है कि वन संरक्षण और भूमि प्रबंधन झील के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- लोकतक झील मणिपुर की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील है और इसे रामसर साइट के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- केइबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान, जो विश्व का एकमात्र तैरता हुआ राष्ट्रीय उद्यान है, लोकतक झील का हिस्सा है और संगाई हिरण का आवास है।
- मोंट्रेक्स रिकॉर्ड में शामिल होने का अर्थ है कि यह झील गंभीर पारिस्थितिक संकट से गुजर रही है।
- झील 132 पौधों और 428 प्राणी प्रजातियों का घर है और यह जलविद्युत, मत्स्य पालन, पर्यटन और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है।
समाधान की दिशा में कदम
शोधकर्ता का सुझाव है कि गांवों और वनों में भूमि उपयोग संबंधी निर्णयों को सामुदायिक भागीदारी से नियंत्रित करना और कृषि अपशिष्ट तथा घरेलू कचरे के निपटान पर सख्त नियंत्रण आवश्यक है। यह न केवल झील के पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने में मदद करेगा, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका को भी संरक्षित करेगा।
लोकतक झील की पर्यावरणीय चुनौतियां मणिपुर ही नहीं, पूरे उत्तर-पूर्व भारत की पारिस्थितिक संवेदनशीलता का प्रतीक हैं। यह अध्ययन हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि सतत विकास और जैव विविधता संरक्षण केवल नीतियों से नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर समुदायों की भागीदारी से ही संभव है।