रोटावैक वैक्सीन से भारत में रोटावायरस डायरिया में भारी गिरावट: एक व्यापक अध्ययन

भारत में विकसित स्वदेशी मौखिक रोटावायरस वैक्सीन ‘रोटावैक’ ने बच्चों में रोटावायरस जनित डायरिया के मामलों में महत्वपूर्ण कमी लाकर एक बड़ी स्वास्थ्य उपलब्धि दर्ज की है। नेचर मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, 2016 से 2020 के बीच देश के विभिन्न राज्यों में रोटावैक के उपयोग से बाल चिकित्सा अस्पतालों में भर्ती रोटावायरस मामलों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है।
अध्ययन का दायरा और प्रमुख निष्कर्ष
इस बहुकेंद्रित अवलोकनात्मक अध्ययन को नयना पी. नायर और समरसिम्हा एन. रेड्डी ने रोटावायरस वैक्सीन प्रभाव मूल्यांकन नेटवर्क के सहयोग से तैयार किया। अध्ययन में 9 राज्यों के 31 अस्पतालों से डेटा इकट्ठा कर रोटावैक को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) में शामिल करने से पहले और बाद की स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया।
रोटावैक को 2016 में भारत सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया था, जिसके तहत इसे 6, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में नवजात शिशुओं को मुफ्त में दिया जाता है। अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि इस वैक्सीन की प्रभावशीलता 54% रही — यह आंकड़ा चरण-3 के क्लिनिकल ट्रायल के परिणामों के समान है। यह प्रभाव खासकर जीवन के पहले दो वर्षों में अधिक स्पष्ट था, जब रोटावायरस संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
सार्वजनिक-निजी सहयोग से बनी स्वदेशी वैक्सीन
रोटावैक का विकास भारत बायोटेक और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने संयुक्त रूप से किया था, जिसमें यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ, CDC, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, PATH और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसे अंतरराष्ट्रीय साझेदार शामिल थे। यह वैक्सीन भारत के लिए आत्मनिर्भर स्वास्थ्य नवाचार का प्रतीक बन गई है।
भारतीय वायरोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग, जो इस परियोजना से जुड़ी थीं, ने कहा कि यह पहली बार है जब भारत से इतने व्यापक स्तर पर रोटावायरस वैक्सीन के प्रभाव को लेकर ठोस डेटा सामने आया है, जो दिखाता है कि क्लिनिकल ट्रायल के बाहर, वास्तविक जीवन में भी यह वैक्सीन उतनी ही प्रभावी है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- रोटावायरस बच्चों की छोटी आंत की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर डायरिया का कारण बनता है।
- विश्व स्तर पर हर साल 1,28,500 बच्चों की मौत रोटावायरस के कारण होती है, जिनमें से 20% मौतें भारत में होती हैं।
- रोटावैक को 6, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में तीन खुराकों में दिया जाता है।
- रोटावैक को भारत की पहली स्वदेशी मौखिक रोटावायरस वैक्सीन के रूप में मान्यता प्राप्त है।