युवाओं में तेजी से बढ़ता टाइप-2 मधुमेह: एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट

टाइप-2 मधुमेह को पहले मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध लोगों की बीमारी माना जाता था, लेकिन हालिया वर्षों में यह स्थिति 40 वर्ष से कम आयु के युवाओं में तेजी से बढ़ रही है। प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका द लैंसेट में प्रकाशित एक श्रृंखला के अनुसार, कुछ देशों में यह रोग पहले ही 15% से अधिक युवाओं को प्रभावित कर चुका है। वर्ष 2013 में जहां 20–39 वर्ष आयु वर्ग में वैश्विक प्रसार दर 2.9% थी, वहीं 2021 में यह बढ़कर 3.8% (260 मिलियन लोग) हो गई।
क्यों चिंता का विषय है प्रारंभिक-प्रारंभ टाइप-2 मधुमेह
इस बीमारी की शुरुआत जितनी जल्दी होती है, जोखिम उतना ही गंभीर होता है। टाइप-2 मधुमेह न केवल तेजी से प्रगति करता है, बल्कि इससे जीवन भर कई बीमारियां हो सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों को 30 वर्ष की उम्र से पहले यह रोग होता है, उनकी औसत जीवन प्रत्याशा 15 वर्ष तक घट जाती है। इसका प्रभाव शिक्षा, रोजगार और पारिवारिक योजनाओं सहित जीवन के हर पहलू पर पड़ता है।
टाइप-1 मधुमेह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जबकि टाइप-2 मधुमेह आमतौर पर जीवनशैली से जुड़ा होता है — जैसे मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, और अस्वस्थ आहार। हालांकि, टाइप-2 मधुमेह अब केवल मोटे लोगों तक सीमित नहीं रहा; कई युवा “लीन फीनोटाइप” (कम वजन वाले मधुमेह रोगी) भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।
औषधियों और उपचार की सीमाएँ
इंक्रेटिन-आधारित वजन घटाने की दवाएं, जैसे GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट, युवाओं में सुरक्षित और प्रभावी साबित हुई हैं, लेकिन इनकी लंबी अवधि की प्रभावशीलता पर अभी पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं है। साथ ही, ये दवाएं अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए अत्यधिक महंगी हैं, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य असमानताएं और बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, केवल दवा पर निर्भर रहना समाधान नहीं हो सकता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2013 में वैश्विक स्तर पर 20–39 आयु वर्ग में टाइप-2 मधुमेह की दर 2.9% थी, जो 2021 में 3.8% हो गई।
- WHO द्वारा अनुशंसित चीनी पेय पदार्थों पर कर अब 100 से अधिक देशों में लागू है, जिससे इनकी बिक्री में औसतन 15% की गिरावट आई है।
- टाइप-2 मधुमेह से 30 वर्ष से पहले पीड़ित व्यक्ति औसतन 15 वर्ष की जीवन प्रत्याशा खो देता है।
- पिछले 30 वर्षों में बचपन और किशोरावस्था में मोटापे का वैश्विक प्रसार 244% बढ़ा है।
समाधान: उपचार नहीं, रोकथाम ज़रूरी
द लैंसेट के संपादकीय ने जोर दिया कि केवल उपचार केंद्रित रणनीतियां पर्याप्त नहीं हैं। बचपन से ही स्वस्थ आदतों को प्रोत्साहित करना और मोटापा पैदा करने वाले वातावरण को नियंत्रित करना आवश्यक है। चीनी युक्त पेय पर कर, स्कूलों में पोषण शिक्षा, और युवाओं के लिए स्वास्थ्यप्रद जीवनशैली को बढ़ावा देने वाली नीतियां कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो प्रभावी सिद्ध हुए हैं।
समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण — सभी मिलकर इस स्वास्थ्य संकट को आकार देते हैं। इसलिए हस्तक्षेप केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रणालीगत स्तर पर होना चाहिए। अगर अभी कार्य नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य प्रणालियों पर बहु-रोगों और समयपूर्व वृद्धावस्था का भारी बोझ पड़ेगा।
अब समय है कि हम जागरूकता, रोकथाम और समान पहुंच वाली स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करें — ताकि युवा पीढ़ी एक स्वस्थ और पूर्ण जीवन जी सके।