मीथेन उत्सर्जन में कमी: वैश्विक तापवृद्धि से निपटने की प्रभावशाली रणनीति

मीथेन उत्सर्जन में कमी: वैश्विक तापवृद्धि से निपटने की प्रभावशाली रणनीति

ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) में मीथेन का योगदान लगभग एक-तिहाई वैश्विक तापवृद्धि में है। कार्बन डाइऑक्साइड के बाद यह सबसे प्रभावशाली GHG है। इसका जीवनकाल अपेक्षाकृत छोटा (लगभग 12 वर्ष) होने के बावजूद, यह अल्पकालिक अवधि में अत्यधिक ऊष्मा अवशोषित करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

मीथेन उत्सर्जन के स्रोत

  • प्राकृतिक स्रोत: आर्द्रभूमियों में वनस्पति अपघटन, दीमक, ज्वालामुखी, जंगलों की आग।
  • मानवजनित स्रोत:

    • कृषि (40%): पशु अपशिष्ट, धान की खेती।
    • जीवाश्म ईंधन क्षेत्र (35%): तेल व गैस निष्कर्षण।
    • कचरा प्रबंधन (20%): लैंडफिल, खुले कचरे, सीवेज।

मीथेन की उपयोगिता

मीथेन का उपयोग बिजली उत्पादन, खाना पकाने, औद्योगिक प्रक्रियाओं, हाइड्रोजन व अमोनिया उत्पादन, तथा CNG/LNG के रूप में परिवहन में होता है। इसके बावजूद, यह एक जलवायु संकट का कारक बन गया है।

वैश्विक प्रयास

  • UNFCCC (1992): GHG में कमी हेतु सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों का सिद्धांत।
  • क्योटो प्रोटोकॉल (2005): मीथेन सहित छह GHGs को शामिल कर बाध्यकारी लक्ष्य तय किए।
  • पेरिस समझौता (2015): स्वैच्छिक, देश-निर्धारित लक्ष्य अपनाने पर बल।
  • COP26: Global Methane Pledge (GMP) – 2030 तक मीथेन में 30% कमी का लक्ष्य।
  • UNEP पहल:

    • IMEO: अंतर्राष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन वेधशाला।
    • MARS (COP27): उपग्रह आधारित मीथेन निगरानी प्रणाली।
  • COP28: ODGC – तेल व गैस क्षेत्र में 2030 तक नेट-शून्य मीथेन उत्सर्जन का लक्ष्य।
  • COP29: जैविक अपशिष्ट से मीथेन में कमी की घोषणा – खाद्य अपशिष्ट, कृषि अवशेष, सीवेज।

भारत की स्थिति

GMP में भागीदारी से इंकार

  • ‘सर्वाइवल’ बनाम ‘लक्ज़री’ उत्सर्जन: भारत के उत्सर्जन आजीविका आधारित, विकसित देशों के औद्योगिक।
  • CO₂ से ध्यान हटाने की चिंता: दीर्घकालिक जलवायु लाभ CO₂ कटौती से संभव।
  • कृषि आधारित आजीविका: धान की खेती और पशुपालन छोटे किसानों की जीवनरेखा।

भारत के प्रयास

  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA): SRI, DSR, फसल विविधीकरण।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): नस्ल सुधार, संतुलित आहार।
  • गोबर-धन योजना: गोबर से बायोगैस, जैविक खाद, स्वच्छ ऊर्जा।
  • राष्ट्रीय बायोगैस एवं जैविक खाद कार्यक्रम: ग्रामीण क्षेत्रों में GHG कटौती।

क्षेत्रवार दृष्टिकोण की प्रभावशीलता

  • ऊर्जा क्षेत्र:

    • तेजी से लागू किया जा सकने वाला, सटीक निगरानी योग्य, कुछ बड़ी कंपनियों द्वारा नियंत्रित।
    • तकनीकी और वित्तीय सहायता से विकसित देश नेतृत्व कर सकते हैं।
  • कृषि क्षेत्र:

    • आजीविका से जुड़ा, छोटे किसानों पर निर्भर।
    • समाधान कठिन, लेकिन आवश्यक।

भारत से सबक

  • ‘सर्वाइवल उत्सर्जन’ की समझ जरूरी।
  • नीतियों में सामाजिक-आर्थिक यथार्थ को सम्मिलित करना आवश्यक।
  • स्वदेशी समाधान जैसे गोबर-धन जैसी योजनाएं ग्रामीण सशक्तिकरण और जलवायु कार्रवाई का संगम हैं।
Originally written on May 30, 2025 and last modified on May 30, 2025.

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