महिलाओं के लिए कम वेतन बन रहा है औपचारिक रोजगार में बाधा

भारत में औपचारिक क्षेत्र की महिलाएं खासकर ब्लू- और ग्रे-कॉलर नौकरियों में कार्यरत महिलाएं, कम वेतन के कारण अपने रोजगार को बनाए रखने में कठिनाई झेल रही हैं। क्वेस कॉर्प और उदैति फाउंडेशन द्वारा जारी एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 54% महिलाएं अपनी आय से असंतुष्ट हैं और 80% महिलाएं हर महीने ₹2,000 से कम या कोई भी बचत नहीं कर पा रही हैं।
महिलाओं के रोजगार में रुकावट: वेतन और अवसर लागत
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया कि महिलाओं के औपचारिक कार्यबल से बाहर होने के पीछे सबसे बड़ा कारण कम वेतन है। महिलाएं पहले से ही घर के काम, देखभाल, आवाजाही में समय और स्थानांतरण जैसे कारकों के कारण उच्च अवसर लागत का सामना करती हैं। ऐसे में यदि वेतन न्यूनतम जीवन यापन के लायक नहीं होता, तो यह उन्हें कार्यबल से बाहर कर देता है।
रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएं पुरुषों की तुलना में केवल 70% वेतन ही प्राप्त कर रही हैं। शहरी सीमा क्षेत्रों में, जहां निर्माण और विनिर्माण इकाइयां अधिक हैं, वहां की न्यूनतम मजदूरी शहरी मानकों से पीछे है, जबकि जीवन यापन की लागत अधिक है।
“लिविंग वेज” की आवश्यकता और सरकारी प्रयास
वर्तमान में भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में “लिविंग वेज” (Living Wage) को लागू करने पर विचार हो रहा है, जो केवल पोषण, आवास और वस्त्र ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा की लागत को भी न्यूनतम वेतन में शामिल करेगा। इससे महिलाओं के लिए कार्यबल में बने रहने की अवसर लागत कम हो सकती है।
श्रम सचिव वंदना गुर्नानी के अनुसार, यह विचार अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन विभिन्न राज्यों की विविध परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे लागू करने की रूपरेखा बनाई जा रही है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- क्वेस कॉर्प भारत की सबसे बड़ी स्टाफिंग कंपनी है, जो 3,000 से अधिक कंपनियों को सेवा प्रदान करती है।
- भारत में महिलाओं की लेबर फोर्स भागीदारी दर (LFPR) जून 2025 में 32% रही, जबकि पुरुषों के लिए यह 77.1% है।
- भारत में कम से कम 54 ऐसे कानून हैं जो महिलाओं के काम करने की बाधा बनते हैं, जैसे रात की शिफ्ट पर प्रतिबंध।
- “लिविंग वेज” का विचार स्वास्थ्य और शिक्षा को न्यूनतम मजदूरी की गणना में शामिल करने की दिशा में एक नया कदम है।
संरचनात्मक बाधाएँ और संभावनाएँ
रिपोर्ट में बताया गया कि वेतन की समस्या के साथ-साथ महिलाओं को कार्यस्थल की संस्कृति, सुरक्षित और सस्ती आवास की कमी, तथा यातायात की दिक्कतों से भी जूझना पड़ता है। कई राज्यों में नीतिगत बाधाएँ, जैसे रात में काम करने पर रोक, महिलाओं की भागीदारी को और अधिक कठिन बना देती हैं।
हालांकि, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में, जहाँ इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग की मजबूत उपस्थिति है, वहाँ महिला कार्यबल की भागीदारी अधिक देखी गई है। इन क्षेत्रों में महिलाओं की उँगलियों की चपलता और आँखों से हाथ का समन्वय उन्हें विशेष रूप से उपयुक्त बनाता है।
इस प्रकार, यदि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर वेतन, अवसर लागत, और संरचनात्मक सुधारों की दिशा में ठोस पहल करते हैं, तो भारत की महिला कार्यबल भागीदारी को 50% के पार ले जाना संभव हो सकता है—जो देश के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के लिए आवश्यक है।