मध्य प्रदेश में जल संरक्षण की नई क्रांति: जल गंगा संवर्धन अभियान

जल संरक्षण और नदी पुनर्जीवन को लेकर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शुरू किया गया “जल गंगा संवर्धन अभियान” अब उल्लेखनीय परिणाम देने लगा है। 30 मार्च 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभ किए गए इस अभियान ने न केवल सूखती नदियों को नया जीवन दिया है, बल्कि प्रदेश में जल संसाधनों के संरक्षण के लिए जनसहभागिता की एक नई मिसाल भी पेश की है।
घटती जलधारा से पुनर्जीवन तक: घोड़ा पछाड़ नदी का उदाहरण
खंडवा जिले की घोड़ा पछाड़ नदी, जो नर्मदा की सहायक नदी है, अत्यधिक भूमिगत जल दोहन के कारण सूख गई थी। लेकिन ‘रिज टू वैली’ सिद्धांत पर आधारित जल संरचनाओं के निर्माण से नदी के 33 किमी क्षेत्र में जल संचयन संभव हुआ। स्थानीय नागरिकों की भागीदारी और वैज्ञानिक तरीके से किए गए जल प्रबंधन ने इस नदी को फिर से बहने योग्य बना दिया। अब इस क्षेत्र की अन्य नदियों में भी बारहमासी प्रवाह की संभावना बन रही है।
जल निकासी और अपशिष्ट प्रबंधन पर प्रभावी कदम
प्रदेश की प्रमुख नदियों—नर्मदा, चंबल, शिप्रा, बेतवा, सोन, टोंस, तापती आदि—में प्रतिदिन 450 मिलियन लीटर घरेलू अपशिष्ट जल छोड़ा जाता है। इसे नियंत्रित करने के लिए नगरीय विकास विभाग द्वारा 869 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थापना की जा रही है। इसके अतिरिक्त, स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के अंतर्गत नालों की सफाई और जल संरचनाओं की शुद्धता का कार्य तेजी से चल रहा है।
संस्कृति, परंपरा और जल संरचनाओं का संरक्षण
जल गंगा अभियान में परंपरागत जल संरचनाओं को संरक्षित करने की दिशा में भी सराहनीय प्रयास हो रहे हैं। इंदौर नगर निगम और EPCO ने शहर की 330 पारंपरिक बावड़ियों और कुओं को पुनर्जीवित किया है। इसके साथ ही जल स्रोतों के चारों ओर ग्रीन बेल्ट विकसित करने और खुदाई से निकली मिट्टी किसानों को देने की योजना से प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जा रहा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- जल गंगा अभियान की शुरुआत 30 मार्च 2025 को क्षिप्रा नदी के तट से की गई थी और यह 30 जून 2025 तक चलेगा।
- इंदौर भारत का पहला “वेटलैंड सिटी” घोषित किया गया है।
- वर्ष 2002 में मध्य प्रदेश में केवल एक रामसर साइट थी, जो अब 2025 तक बढ़कर पाँच हो चुकी हैं।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, राज्य वेटलैंड प्राधिकरण ने 13,565 वेटलैंड्स का भौतिक सत्यापन और सीमांकन पूरा कर लिया है।
यह अभियान न केवल जल संरक्षण की दिशा में एक ठोस पहल है, बल्कि यह सामाजिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जनभागीदारी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नीति-निर्माण के सामूहिक प्रयासों से मध्य प्रदेश अब जल संसाधनों के संरक्षण में एक उदाहरण बनता जा रहा है। जल गंगा संवर्धन अभियान भावी पीढ़ियों के लिए जल, जीवन और प्रकृति की इस अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखने का संकल्प है।