मंडल आयोग: सामाजिक न्याय की ओर भारत की ऐतिहासिक करवट
भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में मंडल आयोग की सिफारिशों का 1990 में हुआ क्रियान्वयन एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ। पिछड़ी जातियों (OBC) के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने वाला यह कदम जहां एक ओर सामाजिक सशक्तिकरण का प्रतीक बना, वहीं दूसरी ओर इसने व्यापक विरोध और असंतोष भी जन्म दिया।
मंडल आयोग की पृष्ठभूमि
मंडल आयोग की नींव बिहार की जटिल जातिगत संरचना और समाजवादी आंदोलन की परंपरा से जुड़ी हुई थी। इसका नेतृत्व बी.पी. मंडल ने किया — जिनका जन्म 25 अगस्त 1918 को वाराणसी में यादव समुदाय में हुआ था। वे जातीय भेदभाव के प्रखर आलोचक थे और 1967 में ‘शोषित दल’ की स्थापना की तथा 1968 में बिहार के पहले पिछड़ा वर्ग आधारित मुख्यमंत्री बने।
1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बी.पी. मंडल को ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ का अध्यक्ष नियुक्त किया। आयोग ने दिसंबर 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ेपन की गहराई से समीक्षा कर 27% आरक्षण की सिफारिश की गई।
वी.पी. सिंह का निर्णय और देशव्यापी विरोध
7 अगस्त 1990 को प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा की। 15 अगस्त के भाषण में इसकी पुष्टि हुई, जिससे कुल आरक्षण सीमा 49% हो गई।
इसके बाद देशभर में विशेषकर छात्रों के बीच तीव्र विरोध शुरू हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय विरोध का केंद्र बन गया। 19 सितंबर 1990 को छात्र राजीव गोस्वामी द्वारा की गई आत्मदाह की कोशिश ने आंदोलन को और भड़काया। विरोध का मुख्य मुद्दा ‘मेधा बनाम आरक्षण’ रहा, जिसमें उच्च जातियों के युवाओं ने असमानता का आरोप लगाया।
सामाजिक पुनर्संरचना और राजनीतिक प्रभाव
मंडल आंदोलन के बाद भारतीय राजनीति में निर्णायक बदलाव आए। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सामाजिक न्याय के नाम पर उभरे क्षेत्रीय दल और पिछड़ी जातियों के नेता राजनीति के केंद्र में आ गए।
लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, राम विलास पासवान और नीतीश कुमार जैसे नेताओं का उदय इसी आंदोलन की देन रहा। दूसरी ओर, उच्च जातियों की प्रतिक्रिया ने ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ को गति दी, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में हिंदुत्व का उभार शुरू हुआ।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- • मंडल आयोग की स्थापना 1978 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने की थी।
- • बी.पी. मंडल इसके अध्यक्ष थे; रिपोर्ट 31 दिसंबर 1980 को सौंपी गई।
- • वी.पी. सिंह सरकार ने 1990 में इसकी सिफारिशें लागू कीं।
- • आयोग ने 27% आरक्षण की सिफारिश की; कुल आरक्षण सीमा 49% हो गई।
- • 1992 के सुप्रीम कोर्ट निर्णय (इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार) में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा आई और आरक्षण सीमा को 50% तक सीमित किया गया।
मंडल आयोग की विरासत और संवैधानिक प्रभाव
बी.पी. मंडल स्वयं अपने कार्य का प्रभाव नहीं देख सके क्योंकि उनका निधन 1982 में हो गया था। लेकिन उनका कार्यभार भारत की आरक्षण नीति की रीढ़ बन गया।
1992 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने न केवल मंडल आयोग की सिफारिशों को वैधता दी, बल्कि ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा द्वारा आर्थिक रूप से सक्षम ओबीसी वर्ग को बाहर कर संतुलन स्थापित किया।
आज भी मंडल आयोग का प्रभाव भारतीय राजनीति, शिक्षा नीति और सामाजिक न्याय की बहसों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह आंदोलन केवल एक आरक्षण नीति नहीं, बल्कि भारत के सत्ता संतुलन, सामाजिक संरचना और पहचान की राजनीति का पुनर्निर्माण था।