भुवनेश्वर पावर एंड स्टील मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला और IBC की समीक्षा

भुवनेश्वर पावर एंड स्टील मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला और IBC की समीक्षा

संसदीय समिति ने हाल ही में दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) में मौजूद अस्पष्टताओं पर चिंता जताई है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा JSW स्टील की भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) की अधिग्रहण योजना को रद्द करने के बाद उठाया गया है। इस निर्णय ने भारत की दिवाला प्रक्रिया की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और उसकी पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई 2025 को JSW स्टील द्वारा BPSL के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था, जो 2019 में मंजूर हुआ था। कोर्ट ने प्रक्रिया में हुई देरी और अन्य खामियों को आधार बनाकर यह निर्णय लिया। इसके बाद, JSW स्टील और अन्य ऋणदाताओं ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसके चलते 26 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने BPSL की परिसमापन प्रक्रिया पर रोक लगा दी ।

IBC की समीक्षा और संभावित संशोधन

वित्त पर स्थायी समिति, जिसकी अध्यक्षता भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब कर रहे हैं, ने IBC की कार्यप्रणाली की समीक्षा की। समिति के सदस्यों ने समाधान प्रक्रिया में देरी और अन्य कमियों को उजागर किया। इससे पहले, जयंत सिन्हा की अध्यक्षता वाली समिति ने भी IBC में सुधार की सिफारिशें की थीं, जिनमें से कुछ को सरकार ने पहले ही लागू किया है।
सूत्रों के अनुसार, सरकार IBC में और संशोधन करने पर विचार कर रही है ताकि भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचा जा सके ।

IBC की प्रमुख विशेषताएं

  • समयबद्ध समाधान: IBC के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) को 180 दिनों में पूरा करना होता है, जिसे 90 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है। कुल मिलाकर, प्रक्रिया को 330 दिनों में पूरा करना अनिवार्य है।
  • नियामक निकाय: IBC के तहत, दिवाला और दिवालियापन बोर्ड ऑफ इंडिया (IBBI) की स्थापना की गई है, जो दिवाला प्रक्रियाओं की निगरानी करता है।
  • प्रमुख प्राधिकरण: राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (NCLT) कॉर्पोरेट दिवाला मामलों के लिए प्रमुख प्राधिकरण है।

भूषण पावर एंड स्टील मामला: एक उदाहरण

BPSL का मामला IBC की चुनौतियों को उजागर करता है। JSW स्टील द्वारा 2019 में BPSL का अधिग्रहण किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में इसे रद्द कर दिया, जिससे निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ गई। कोर्ट ने प्रक्रिया में हुई देरी और अन्य खामियों को आधार बनाकर यह निर्णय लिया ।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • IBC की स्थापना: IBC को 2016 में संसद द्वारा पारित किया गया था और यह 28 मई 2016 को लागू हुआ।
  • प्रथम मामला: IBC के तहत पहला समाधान आदेश 14 अगस्त 2017 को Synergies-Dooray Automotive Ltd. के मामले में पारित हुआ।
  • समय सीमा: IBC के तहत, कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया को 330 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य है, जिसमें कानूनी कार्यवाही में लगा समय भी शामिल है।
  • प्रमुख निकाय: IBC के तहत, दिवाला और दिवालियापन बोर्ड ऑफ इंडिया (IBBI) की स्थापना की गई है, जो दिवाला प्रक्रियाओं की निगरानी करता है।
Originally written on May 30, 2025 and last modified on May 30, 2025.

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