भारत-यूके व्यापार समझौते में बौद्धिक संपदा पर समझौता: सार्वजनिक स्वास्थ्य और तकनीकी हस्तांतरण पर पड़ता प्रभाव

भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच हुए व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (CETA) के बौद्धिक संपदा अध्याय (Chapter 13) ने कई चिंताएं खड़ी कर दी हैं। विशेष रूप से अनुच्छेद 13.6 — “TRIPS और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के संदर्भ में समझ” — भारत की अब तक की सख्त नीतियों में एक स्पष्ट बदलाव को दर्शाता है। यह अनुच्छेद कहता है कि औषधियों तक पहुंच का “अधिकतम और प्राथमिक तरीका” स्वैच्छिक लाइसेंसिंग है, न कि अनिवार्य लाइसेंसिंग।
अनिवार्य लाइसेंसिंग से पीछे हटने का असर
भारत ने पहले हमेशा उच्च मूल्यों वाली पेटेंट औषधियों के समाधान के रूप में अनिवार्य लाइसेंसिंग का समर्थन किया है। उदाहरण के लिए, 2012 में नैटको फार्मा को कैंसर की दवा सोराफेनीब टोसाइलेट के लिए अनिवार्य लाइसेंस दिए जाने के बाद, दवा की कीमत ₹2,80,428 से घटकर ₹8,800 प्रति माह हो गई थी। यही सिद्धांत भारत के पेटेंट अधिनियम में WTO के TRIPS समझौते के अनुरूप बदलावों के समय सम्मिलित किया गया था।
अब CETA के तहत, भारत द्वारा स्वैच्छिक लाइसेंसिंग को “प्राथमिक” मार्ग के रूप में स्वीकार करना, WTO के भीतर उसकी अब तक की स्थिति को कमजोर करता है। यह उन विकासशील देशों की साझा लड़ाई को भी प्रभावित करेगा, जिन्होंने 2001 की ‘दोहा घोषणा’ के माध्यम से अनिवार्य लाइसेंसिंग के अधिकार को सुरक्षित किया था।
स्वैच्छिक लाइसेंसिंग के जोखिम
स्वैच्छिक लाइसेंसिंग के तहत, पेटेंटधारी कंपनियाँ आम तौर पर अनुबंधों में शर्तें तय करती हैं — जैसे सीमित आपूर्ति श्रृंखला, एपीआई (API) नियंत्रण, और कीमतें तय करने का अधिकार। उदाहरण के लिए, COVID-19 की दवा रेमडेसिविर पर सिप्ला को Gilead से मिले स्वैच्छिक लाइसेंस के बाद भारत में इसकी कीमत क्रय शक्ति के आधार पर अमेरिका से भी अधिक रही। यह दर्शाता है कि स्वैच्छिक लाइसेंसिंग सस्ती दवा उपलब्धता की गारंटी नहीं दे सकती।
तकनीकी हस्तांतरण की मांग कमजोर हुई
CETA का यह प्रावधान तकनीकी हस्तांतरण पर भारत की पारंपरिक मांग को भी कमजोर करता है। भारत 1974 से ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में “अनुकूल शर्तों पर तकनीक हस्तांतरण” की मांग करता आया है — विशेष रूप से औद्योगीकरण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए।
भारत की 2024 की जलवायु रिपोर्ट में यह स्पष्ट कहा गया कि “धीमी अंतरराष्ट्रीय तकनीक हस्तांतरण और बौद्धिक संपदा अधिकार” जलवायु-संवेदनशील तकनीकों को अपनाने में बाधक हैं। लेकिन CETA में भारत द्वारा “आपसी सहमति से तकनीक हस्तांतरण” को स्वीकार कर लेना, उसकी पुरानी वैश्विक मांग की धार को कम करता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत ने 2012 में कैंसर दवा पर पहली अनिवार्य लाइसेंसिंग दी थी (Natco Pharma बनाम Bayer)।
- दोहा घोषणा (2001) ने WTO के सदस्य देशों को अनिवार्य लाइसेंसिंग के पूर्ण अधिकार प्रदान किए।
- भारत की पेटेंट नीति TRIPS के अनुरूप 2005 में संशोधित की गई थी, जिसमें जनता की आवश्यकता, किफायती मूल्य और घरेलू उपयोग (‘वर्किंग’) को आधार बनाया गया।
- 2024 में भारत ने अपनी जलवायु रिपोर्ट में IPR को तकनीकी हस्तांतरण की सबसे बड़ी बाधा बताया।
- CETA और इससे पहले EFTA के साथ समझौते में ‘वर्किंग रिपोर्टिंग’ को 3 वर्ष की न्यूनतम समयसीमा तक सीमित कर दिया गया है।