भारत में शिक्षा का नया चेहरा: स्कूलों के साथ-साथ बढ़ता शैडो स्कूलीकरण

भारत में शिक्षा का नया चेहरा: स्कूलों के साथ-साथ बढ़ता शैडो स्कूलीकरण

भारत में शिक्षा अब केवल कक्षा तक सीमित नहीं रही। हालिया सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, हर तीन में से एक स्कूली छात्र निजी कोचिंग, ट्यूशन क्लास या होम ट्यूटर के जरिए पढ़ाई कर रहा है। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में अभिभावक पारंपरिक स्कूल शिक्षा के साथ-साथ निजी शैक्षिक सेवाओं पर भी भारी खर्च कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति शिक्षा के अनुभव को गहराई से बदल रही है।

शैडो स्कूलीकरण क्या है?

शैडो स्कूलीकरण का अर्थ है स्कूल समय के बाहर दी जाने वाली निजी कोचिंग या ट्यूशन। ये अतिरिक्त कक्षाएँ छात्रों को परीक्षा की तैयारी में मदद करती हैं या उन्हें प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त दिलाने के लिए होती हैं। हालांकि इन्हें पूरक के रूप में देखा जाता है, लेकिन आज ये शहरी छात्रों के लिए शिक्षा का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं।

ग्रामीण भारत में सरकारी स्कूल, शहरों में निजी लहर

राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी स्कूलों में नामांकन 55.9% है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा दो-तिहाई से अधिक है। लेकिन शहरी भारत में मात्र 30.1% बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं; बाकी निजी स्कूलों में जाते हैं। ऊँची आय और अधिक शैक्षिक आकांक्षाएँ शहरी अभिभावकों को निजी शिक्षा की ओर ले जाती हैं।

शिक्षा का खर्च: दो अलग-अलग दुनियाएँ

सरकारी स्कूलों में औसतन प्रति छात्र वार्षिक खर्च ₹2,863 है, जबकि निजी स्कूलों में यह ₹25,002 तक पहुँच जाता है — लगभग नौ गुना अधिक। केवल 25% सरकारी स्कूल छात्रों से फीस ली जाती है, वहीं निजी स्कूलों में 95.7% छात्र फीस देते हैं। शहरी परिवारों का औसत खर्च ₹15,143 प्रति छात्र है, जो ग्रामीण परिवारों के ₹3,979 से कहीं अधिक है।

कोचिंग का बढ़ता दबाव

इस वर्ष 27% छात्रों ने किसी न किसी रूप में निजी कोचिंग ली। शहरों में यह प्रतिशत 30.7% है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 25.5%। शहरी परिवार कोचिंग पर ₹3,988 प्रति छात्र वार्षिक खर्च कर रहे हैं, जबकि ग्रामीण परिवार ₹1,793 खर्च करते हैं। उच्च माध्यमिक स्तर पर यह खर्च शहरों में ₹9,950 तक पहुँचता है — ग्रामीण खर्च से दुगुना।

शिक्षा का वित्तपोषण: घर की जेब पर बोझ

देशभर में 95% छात्रों की शिक्षा का खर्च परिवार ही वहन करता है। सरकारी छात्रवृत्तियाँ केवल 1.2% छात्रों को मिल रही हैं। इस प्रकार न केवल स्कूल की फीस, बल्कि कोचिंग का खर्च भी सीधे घर की आय से ही पूरा होता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • सर्वेक्षण: 80वां राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण (NSS) का हिस्सा, कुल 52,000 घरों और 58,000 छात्रों को कवर किया गया।
  • शहरी क्षेत्रों में 98% निजी स्कूल छात्र फीस देते हैं।
  • उच्च माध्यमिक स्तर पर शहरी कोचिंग खर्च: ₹9,950 प्रति छात्र।
  • केवल 1.2% छात्रों को सरकारी छात्रवृत्ति का लाभ मिलता है।

शैडो स्कूलीकरण एक ओर जहाँ शैक्षणिक सफलता की ओर अग्रसर होने का मार्ग बनता दिखता है, वहीं यह गहरी शैक्षिक असमानता को भी उजागर करता है। जहाँ एक ओर ग्रामीण क्षेत्र सरकारी स्कूलों और सीमित संसाधनों पर निर्भर हैं, वहीं शहरी परिवार शिक्षा को ‘आउटसोर्स’ कर पा रहे हैं — जो केवल धन के बल पर संभव है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण और सुलभ शिक्षा को सुनिश्चित करना है। लेकिन शैडो स्कूलीकरण का यह बढ़ता चलन यह सवाल उठाता है: क्या यह नीति शहरी-ग्रामीण खाई को पाट पाएगी? और क्या शिक्षा सभी के लिए सच्चे अर्थों में उपलब्ध हो पाएगी, या केवल उन्हीं के लिए रहेगी जो उसे खरीद सकते हैं?

Originally written on August 29, 2025 and last modified on August 29, 2025.

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