भारत में ‘रिपेयर संस्कृति’ की पुनर्स्थापना: टिकाऊ तकनीक के लिए मौन कौशल को पहचानने की आवश्यकता

भारत सरकार ने मई 2025 में मोबाइल फोन और घरेलू उपकरणों के लिए रिपेयरबिलिटी इंडेक्स (मरम्मत योग्यता सूचकांक) को स्वीकार कर टिकाऊ तकनीक की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह सूचकांक उत्पादों को उनकी मरम्मत की आसानी, स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता और सॉफ्टवेयर समर्थन के आधार पर रैंक करता है। साथ ही, नए ई-वेस्ट प्रबंधन नियमों में औपचारिक रीसायक्लिंग को प्रोत्साहन देने के लिए न्यूनतम भुगतान का प्रावधान भी किया गया है। ये पहल जहां टिकाऊ खपत को बढ़ावा देती हैं, वहीं एक अनदेखे पक्ष — मरम्मत को एक सांस्कृतिक और बौद्धिक ज्ञान के रूप में — को स्वीकार करना भी उतना ही जरूरी है।

मौन ज्ञान और भारत की रिपेयर परंपरा

भारत की मरम्मत संस्कृति केवल एक सेवा नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही tacit knowledge (मौन ज्ञान) का एक ज्वलंत उदाहरण है। यह ज्ञान न तो किसी सर्टिफिकेट से प्रमाणित होता है, न ही किसी डिजिटल पोर्टल पर सूचीबद्ध होता है। दिल्ली के करोल बाग से लेकर चेन्नई की रिची स्ट्रीट तक, मोबाइल रिपेयरर्स और तकनीशियन वर्षों की अनुभवसिद्ध कुशलता के साथ उपकरणों को जीवन देते हैं। वे मैन्युअल नहीं पढ़ते, बल्कि मशीन की ध्वनि, कंपन और दृष्टि से दोष का निदान करते हैं।

आधुनिक नीतियों में मरम्मतकर्ताओं की उपेक्षा

भारत का डिजिटल और एआई नीति परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है। डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) और नेशनल एआई स्ट्रैटेजी जैसे प्रयास नवाचार और डेटा-केंद्रित शासन को बढ़ावा देते हैं। लेकिन जो लोग इन तकनीकों को रोजमर्रा के जीवन में कार्यशील बनाए रखते हैं — जैसे अनौपचारिक मरम्मतकर्ता — वे नीति और डिजिटल ढांचे में अदृश्य बने रहते हैं। जैसे-जैसे उत्पाद कम मरम्मत योग्य होते जा रहे हैं और उपभोक्ता ‘डिस्पोज़ेबल कल्चर’ की ओर बढ़ते हैं, यह ज्ञान समाज से मिटता जा रहा है।

रिपेयर को अधिकार और नीति के केंद्र में लाना

2022 में उपभोक्ता मामलों के विभाग ने ‘राइट टू रिपेयर’ फ्रेमवर्क शुरू किया, और 2023 में एक राष्ट्रीय पोर्टल लांच किया गया। परंतु अभी भी मरम्मत को नीति में एक परिधीय भूमिका दी जाती है, जबकि यह टिकाऊ उपभोग की रीढ़ है। राष्ट्रीय कौशल विकास योजनाएँ जैसे पीएम कौशल विकास योजना, मरम्मत जैसे अनौपचारिक कार्यों को शायद ही ध्यान में रखती हैं, जबकि इन कार्यों में अत्यधिक विश्लेषण, रचनात्मकता और अनौपचारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2021-22 में भारत ने 1.6 मिलियन टन ई-वेस्ट उत्पन्न किया, जो विश्व में तीसरे स्थान पर है।
  • यूरोपीय संघ में अब निर्माताओं को स्पेयर पार्ट्स और रिपेयर मैन्युअल उपलब्ध कराना अनिवार्य कर दिया गया है।
  • भारत का ‘राइट टू रिपेयर’ पोर्टल 2023 में लॉन्च हुआ, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और कृषि उपकरण शामिल हैं।
  • iFixit की 2023 रिपोर्ट के अनुसार एशिया में बेचे गए केवल 23% स्मार्टफोन ही आसानी से मरम्मत योग्य हैं।

AI और नीतिगत समावेशन की संभावनाएँ

आज जब भारत AI बुनियादी ढांचे और डिजिटल पब्लिक गुड्स में निवेश कर रहा है, तब नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि तकनीकी डिज़ाइन, स्किलिंग और सामाजिक सुरक्षा में मरम्मतकर्ता शामिल हों। ‘अनमेकिंग’ — यानी उत्पादों को जानबूझकर इस तरह डिजाइन करना कि वे टूटने पर फिर से बन सकें — एक प्रमुख अवधारणा बन रही है। AI मॉडल्स का उपयोग अब tacit knowledge को संरचित फॉर्म में संकलित करने और व्यापक रूप से साझा करने के लिए किया जा सकता है।
भारत की ‘जुगाड़’ संस्कृति और सीमित संसाधनों में समाधान निकालने की परंपरा तकनीकी नवाचारों का एक वैकल्पिक मॉडल पेश करती है। यह न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह टिकाऊ भविष्य की नींव भी है।
मरम्मतकर्ताओं को सिर्फ सेवा प्रदाता नहीं, बल्कि टिकाऊ तकनीक के संरक्षक के रूप में मान्यता देने का समय आ गया है। यही एक न्यायसंगत, समावेशी और मरम्मत-योग्य डिजिटल भविष्य की ओर भारत को अग्रसर करेगा।

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