भारत में मानसिक स्वास्थ्य: चुनौतियाँ, कानून और सुधार की राह

भारत में मानसिक स्वास्थ्य: चुनौतियाँ, कानून और सुधार की राह

भारत सहित पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है, जो इस समस्या की व्यापकता को दर्शाता है — दुनिया की लगभग 13% आबादी, यानी एक अरब से अधिक लोग मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं। भारत में यह आंकड़ा लगभग 13.7% है, यानी लगभग 20 करोड़ भारतीय किसी न किसी मानसिक रोग से प्रभावित हैं।
भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए 2017 में ऐतिहासिक “मेन्टल हेल्थकेयर एक्ट” पारित किया, जो मानसिक स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार सुनिश्चित करता है, आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है, बीमा कवरेज की अनिवार्यता लाता है और रोगियों की गरिमा और स्वायत्तता को कानूनी संरक्षण देता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय “सुकदेव साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य” ने मानसिक स्वास्थ्य को अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी है, जिससे सरकार पर गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की बाध्यता आ जाती है।

सरकारी पहल और कार्यक्रम

सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के विकेंद्रीकरण की दिशा में “जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP)” शुरू किया है, जो देश के 767 जिलों को कवर करता है। इसके अंतर्गत परामर्श, आउट पेशेंट सेवाएं, और आत्महत्या रोकथाम जैसी सुविधाएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, टेली-मेनस (Tele MANAS) जैसी 24×7 टेली-काउंसलिंग सेवाओं ने अब तक 20 लाख से अधिक लोगों को सहायता दी है, जो दूरदराज़ क्षेत्रों में सेवाओं की पहुंच बढ़ा रही है।
शिक्षा क्षेत्र में “मनोदर्पण” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से 11 करोड़ छात्रों तक मानसिक स्वास्थ्य की जागरूकता और सहायता पहुँचाई गई है, जो एक बड़ा कदम है।

मौजूदा चुनौतियाँ

हालांकि नीतियाँ और कार्यक्रम मौजूद हैं, लेकिन भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में कई गंभीर चुनौतियाँ बनी हुई हैं। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार मानसिक रोगों में उपचार गैप 70%-92% तक है। केवल अवसाद और चिंता जैसे सामान्य विकारों में ही 85% उपचार गैप देखा गया।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भारी कमी है — प्रति 1 लाख जनसंख्या पर केवल 0.75 मनोचिकित्सक और 0.12 मनोवैज्ञानिक ही उपलब्ध हैं, जबकि WHO के अनुसार यह संख्या कम से कम 3 होनी चाहिए। कई राज्यों में DMHP की कार्यप्रणाली प्रभावी नहीं पाई गई है, और आवश्यक दवाओं की उपलब्धता भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अनियमित है।
पुनर्वास सेवाएं, जो रोगियों के सामाजिक पुनर्स्थापन के लिए आवश्यक हैं, केवल 15% ज़रूरतों को पूरा कर पा रही हैं। मानसिक रोगों को लेकर समाज में गहरी कलंक की भावना बनी हुई है, जहाँ 50% से अधिक लोग इसे व्यक्तिगत कमजोरी मानते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में “मेन्टल हेल्थकेयर एक्ट, 2017” आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है।
  • WHO के अनुसार प्रत्येक 1 लाख जनसंख्या पर कम से कम 3 मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होती है।
  • “टेली मेनस” एक राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन है, जो 24×7 सेवाएं देती है।
  • “मनोदर्पण” भारत सरकार का स्कूल-आधारित कार्यक्रम है जो छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित है।
Originally written on October 11, 2025 and last modified on October 11, 2025.

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