भारत में बायोस्टिमुलेंट्स: सतत कृषि और हरित निर्यात की नई दिशा

जलवायु परिवर्तन और मिट्टी के क्षरण जैसी दोहरी चुनौतियों से जूझ रही दुनिया में भारत चुपचाप एक नई हरित क्रांति की पटकथा लिख रहा है। इस परिवर्तन की धुरी बन रहे हैं बायोस्टिमुलेंट्स — ऐसे प्राकृतिक कृषि इनपुट जो पौधों को तनावपूर्ण परिस्थितियों में पनपने, पोषक तत्वों का बेहतर उपयोग करने और बिना रासायनिक कीटनाशकों के अधिक उपज देने में सक्षम बनाते हैं।
भारत में बायोस्टिमुलेंट्स का उभरता भविष्य
बायोस्टिमुलेंट्स समुद्री शैवाल, ह्यूमिक और फुल्विक अम्ल, अमीनो एसिड, विटामिन्स और लाभकारी सूक्ष्मजीवों से प्राप्त होते हैं। पारंपरिक उर्वरकों या कीटनाशकों के विपरीत, ये पौधों की आंतरिक जैविक प्रक्रियाओं को सक्रिय करते हैं, जिससे वे जलवायु दबावों के बीच भी अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं। जैविक और पारंपरिक दोनों कृषि प्रणालियों में इनकी बढ़ती स्वीकार्यता इस क्षेत्र की संभावनाओं को रेखांकित करती है।
वर्तमान अनुमानों के अनुसार, भारत का बायोस्टिमुलेंट बाज़ार वर्ष 2032 तक 1.13 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिसकी वार्षिक वृद्धि दर 15.64% अनुमानित है। यह वृद्धि स्थायी कृषि की मांग, सरकार द्वारा हरित इनपुट को प्रोत्साहन और जलवायु-लचीले फसलों की आवश्यकता से प्रेरित है।
निर्यात में भारत की बढ़त
भारत की जैव विविधता, विशाल कृषि भूमि और किफायती अनुसंधान एवं विकास क्षमताएं इसे वैश्विक बायोस्टिमुलेंट निर्यात का केंद्र बना रही हैं। वर्तमान में भारत 45 से अधिक देशों को बायोस्टिमुलेंट्स निर्यात करता है, जिनमें यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका प्रमुख हैं। भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मानकों जैसे REACH, ISO, EU 2019/1009 और GMP का पालन करके वैश्विक बाजार में अपनी पैठ बना रही हैं।
MSMEs: स्थानीय नवाचार के अग्रदूत
भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) इस क्षेत्र में नवाचार और अंतिम मील डिलीवरी को बढ़ावा दे रहे हैं। हालांकि, इन उद्यमों को उच्च अनुपालन लागत, जटिल नियमों और परीक्षण सुविधाओं की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र की पूरी क्षमता को अनलॉक करने के लिए MSME-केंद्रित जैव-इनपुट नीति की आवश्यकता है, जिसमें शामिल हो:
- सार्वजनिक वित्त पोषित जैव-प्रभाव परीक्षण केंद्र
- बहुस्तरीय लाइसेंसिंग प्रणाली
- सब्सिडी युक्त डाटा निर्माण योजनाएं
- वैश्विक मानकों का समरूपीकरण
ICAR की भूमिका और ग्रामीण प्रभाव
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) इस तकनीक के लोकतंत्रीकरण में अहम भूमिका निभा सकती है। ICAR फसल-विशिष्ट मानक संचालन प्रक्रियाएं, निर्माण प्रोटोकॉल और जैव-प्रभाव मानदंड विकसित कर सकती है, जिससे MSMEs को सस्ती और वैज्ञानिक सहायता मिल सके। यह देश को विदेशी प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता से मुक्त कर, खुले नवाचार और घरेलू स्तर पर पैमाने की वृद्धि को प्रोत्साहित करेगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में बायोस्टिमुलेंट्स का बाजार 2032 तक 1.13 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।
- भारत वर्तमान में 45 से अधिक देशों को बायोस्टिमुलेंट्स निर्यात करता है।
- प्रमुख निर्यात गंतव्य: बांग्लादेश, वियतनाम, UAE, मिस्र, स्पेन, केन्या।
- ICAR की स्थापना 1929 में हुई थी और यह भारत की शीर्ष कृषि अनुसंधान संस्था है।
वैश्विक हरित व्यापार में भारत की भूमिका
यदि भारत को बायोस्टिमुलेंट्स का वैश्विक केंद्र बनना है, तो नीतिगत स्तर पर कुछ साहसिक कदम आवश्यक हैं, जैसे:
- कृषि निर्यात नीति के तहत निर्यात सब्सिडी
- पारदर्शिता के लिए इको-लेबलिंग और ब्लॉकचेन ट्रैसेबिलिटी
- सार्वजनिक-निजी अनुसंधान साझेदारियाँ
- सतत इनपुट विनिमय हेतु द्विपक्षीय व्यापार समझौते
आज, भारत हरित निर्यात की एक नई दिशा की ओर अग्रसर है। बायोस्टिमुलेंट्स इस परिवर्तन के केंद्र में हैं और यह क्षेत्र न केवल कृषि को टिकाऊ बना रहा है, बल्कि भारतीय किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त भी कर रहा है। भविष्य की दिशा स्पष्ट है: जैविक नवाचार, स्थानीय क्षमता और वैश्विक सोच के मेल से भारत वैश्विक कृषि मंच पर अपनी नई पहचान बना रहा है।