भारत में बाढ़ जोखिम वाले झुग्गी निवासियों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक: नई रिपोर्ट के निष्कर्ष

दुनिया भर में बाढ़ की घटनाएं एक बड़ा खतरा बनी हुई हैं और भारत इस संकट की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत में 158 मिलियन से अधिक लोग झुग्गियों में रहते हैं जो बाढ़ संभावित क्षेत्रों में स्थित हैं — यह संख्या रूस की कुल जनसंख्या से अधिक है। ये बस्तियाँ विशेष रूप से गंगा के डेल्टा क्षेत्र में केंद्रित हैं, जो स्वाभाविक रूप से बाढ़ के प्रति संवेदनशील है।
वैश्विक दक्षिण में असमान जोखिम
‘Nature Cities’ में जुलाई 2025 में प्रकाशित इस अध्ययन ने 129 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 343 बड़ी बाढ़ों के सैटेलाइट डेटा के साथ अनौपचारिक बस्तियों की मैपिंग की। इसके निष्कर्षों में बताया गया कि वैश्विक दक्षिण में 33% अनौपचारिक बस्तियाँ पहले से बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में स्थित हैं। कुल मिलाकर, 445 मिलियन लोग, 67,568 झुग्गी क्लस्टर्स में रहते हैं जो बाढ़ के खतरे में हैं।
भारत में बाढ़ और बस्तियों का संबंध
भारत की शहरी और उपनगरीय बस्तियों में झुग्गी निवासियों का 40% हिस्सा है। लोग बाढ़ संभावित क्षेत्रों में बसने के लिए मजबूर होते हैं — मुख्यतः रोजगार, सामाजिक भेद्यता और सस्ते आवास के कारण। जैसे-जैसे बड़े डेवलपर फ्लडप्रोन क्षेत्रों से बचते हैं, वैसे-वैसे प्रवासी श्रमिक और गरीब वर्ग इन्हीं क्षेत्रों में झुग्गियाँ बसाते हैं, जैसा कि बेंगलुरु, मुंबई और कोलकाता में देखा गया है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- वैश्विक स्तर पर 2.3 अरब लोग हर साल बाढ़ जोखिम में रहते हैं (Moody’s रिपोर्ट, 2024)।
- भारत में 600 मिलियन लोग तटीय या अंतर्देशीय बाढ़ के जोखिम में हैं।
- भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और पाकिस्तान — दक्षिण एशिया के देश — सर्वाधिक प्रभावित हैं।
क्यों होते हैं गरीब लोग अधिक जोखिम में?
अध्ययन में बताया गया कि झुग्गी निवासियों के पास संसाधनों की भारी कमी होती है — जैसे कि बीमा, सुरक्षित आवास, जल निकासी व्यवस्था और सूचना तक पहुंच। इसके अलावा, बाढ़ के बाद नौकरी और सेवाओं की हानि जैसे परोक्ष प्रभाव भी उनके जीवन पर गहरा असर डालते हैं। इसके उलट, विकसित देशों में लोग प्राकृतिक सुंदरता या बीमा कवरेज के कारण फ्लडप्रोन क्षेत्रों में रहते हैं।
सतत विकास लक्ष्य (SDGs) और नीति संबंधी सिफारिशें
2030 तक संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों की समयसीमा नजदीक है। इस संदर्भ में अध्ययन ने निम्नलिखित सुझाव दिए:
- केवल स्थान आधारित रणनीतियों से आगे बढ़कर ‘मानव-केंद्रित’ नीति बनाई जाए।
- स्वच्छता, जल निकासी और अपशिष्ट प्रबंधन जैसी सुविधाओं में स्थानीय कौशल को बढ़ावा दिया जाए।
- सरकारों को अनौपचारिक बस्तियों के साथ सहयोग कर बाढ़-उन्मुख रणनीतियाँ विकसित करनी चाहिए।
अंततः यह अध्ययन यह रेखांकित करता है कि बाढ़ जोखिम से सबसे अधिक प्रभावित वे लोग हैं जो समाज में सबसे कमज़ोर हैं। उपयुक्त नीति, डेटा आधारित योजना, और स्थानीय भागीदारी के माध्यम से ही इस असमानता को दूर कर एक न्यायसंगत और सुरक्षित भविष्य की दिशा में बढ़ा जा सकता है।