भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): गिरते प्रवाह और दीर्घकालिक विकास पर प्रभाव

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से आर्थिक विकास का एक प्रमुख स्तंभ रहा है। इसने देश के औद्योगिक आधार को आधुनिक बनाने, तकनीकी नवाचार लाने और भारत को वैश्विक बाजार से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। विशेष रूप से ई-कॉमर्स और कंप्यूटर हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर क्षेत्रों में FDI ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं। लेकिन हाल के वर्षों में FDI का स्वरूप और उद्देश्य बदलता हुआ दिखाई दे रहा है, जिससे भारत की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और विकास पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं।

विदेशी पूंजी का अल्पकालिक झुकाव

हालांकि FDI के सकल आंकड़े अब भी उत्साहजनक प्रतीत होते हैं — जैसे FY 2024-25 में $81 बिलियन का ग्रॉस इनफ्लो — लेकिन इन आंकड़ों के पीछे एक गंभीर चिंता छिपी है। आज का निवेश अधिकतर लघुकालिक लाभ अर्जन और टैक्स आर्बिट्राज पर केंद्रित है, न कि दीर्घकालिक औद्योगिक विकास या तकनीकी स्थानांतरण पर।
पिछले कुछ वर्षों में नेट FDI (सकल इनफ्लो – रिटर्न व रिपेट्रिएशन) में भारी गिरावट आई है। FY 2024-25 में यह मात्र $0.4 बिलियन रहा, जबकि FY 2021-22 में यह कई गुना अधिक था। इसका एक बड़ा कारण है विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी की तेजी से निकासी — FY 2023-24 में यह 51% बढ़कर $44.4 बिलियन और FY 2024-25 में $51.4 बिलियन पहुंच गई।

भारतीय कंपनियों की विदेशों में बढ़ती निवेश प्रवृत्ति

जहां एक ओर विदेशी पूंजी भारत से निकल रही है, वहीं भारतीय कंपनियां भी विदेशों में अधिक निवेश कर रही हैं। FY 2011-12 में $13 बिलियन के मुकाबले यह FY 2024-25 में $29.2 बिलियन तक पहुंच चुका है। इसका कारण कई कंपनियों द्वारा भारत में नियामकीय जटिलता, अविकसित अवसंरचना, और नीतिगत अनिश्चितता बताया गया है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • FDI ग्रॉस इनफ्लो FY 2024-25 में $81 बिलियन रहा, लेकिन नेट इनफ्लो मात्र $0.4 बिलियन था।
  • FY 2023-24 में डिसइनवेस्टमेंट 51% बढ़कर $44.4 बिलियन और अगले वर्ष $51.4 बिलियन तक पहुंच गया।
  • भारत की FDI में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा घटकर केवल 12% रह गया है।
  • FY 2025 में महाराष्ट्र और कर्नाटक ने 51% FDI आकर्षित किया।
  • प्रमुख स्रोत जैसे अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन ने FDI में भागीदारी घटाई है, जबकि सिंगापुर और मॉरीशस जैसे वित्तीय केंद्र शीर्ष निवेशक बने हुए हैं।

दीर्घकालिक सोच की आवश्यकता

FDI के मौजूदा रुझानों से स्पष्ट है कि केवल निवेश के आंकड़ों से वास्तविक आर्थिक प्रभाव को नहीं आंका जा सकता। भारत को चाहिए कि वह FDI की गुणवत्ता, अवधि और रणनीतिक अनुरूपता पर ध्यान केंद्रित करे।
नीतिगत स्थिरता, नियामकीय सरलीकरण, आधारभूत ढांचे में निवेश और संस्थानों में भरोसे की पुनर्स्थापना जैसे उपाय भारत को अधिक विश्वसनीय निवेश गंतव्य बना सकते हैं। साथ ही, ह्यूमन कैपिटल यानी कौशल विकास और शिक्षा में निवेश भी आवश्यक है, जिससे भारत उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों जैसे उन्नत मैन्युफैक्चरिंग, स्वच्छ ऊर्जा और टेक्नोलॉजी में प्रतिस्पर्धा कर सके।
भारत इस समय FDI के दोराहे पर खड़ा है। यदि सही नीतिगत दिशा और सुधार नहीं किए गए, तो यह अवसर एक चुनौती में बदल सकता है, जिससे न केवल आर्थिक विकास बल्कि वैश्विक निवेशक विश्वास भी प्रभावित हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *