भारत में पहली स्वदेशी जल में घुलनशील उर्वरक तकनीक का विकास: आत्मनिर्भरता की दिशा में क्रांतिकारी कदम

सात वर्षों की निरंतर शोध और प्रयासों के बाद भारत ने अपनी पहली स्वदेशी जल में घुलनशील उर्वरक तकनीक (Water-Soluble Fertiliser Technology) का सफलतापूर्वक विकास कर लिया है। यह उपलब्धि न केवल देश को चीन पर निर्भरता से मुक्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि भारत को विशेष उर्वरक क्षेत्र में एक निर्यातक शक्ति बनाने की संभावना भी प्रस्तुत करती है। इस परियोजना को खनन मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है और इसे भारतीय कच्चे माल तथा देश में निर्मित संयंत्रों के माध्यम से विकसित किया गया है।
तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर भारत का प्रयास
फिलहाल भारत 80% विशेष उर्वरकों का आयात सीधे चीन से करता है, जबकि शेष 20% की आपूर्ति अप्रत्यक्ष रूप से भी चीन से ही होती है। केवल 5% एनपीके (NPK) फॉर्मूलेशन भारत में घरेलू स्तर पर निर्मित होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश 95% तक चीनी तकनीक और आपूर्ति पर निर्भर है। इस पृष्ठभूमि में स्वदेशी तकनीक का विकास ‘मेक इन इंडिया’ के विजन को साकार करता है।
इस अनुसंधान का नेतृत्व सॉल्युबल फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री एसोसिएशन (SFIA) के अध्यक्ष राजीव चक्रवर्ती ने किया, जिन्होंने इस परियोजना में अपने व्यवसाय और जीवन की पूरी पूंजी जोखिम में डाल दी थी। उन्होंने बताया कि अनुसंधान और विकास की प्रक्रिया असफलताओं से भरी होती है, और सफलता हजारों असफलताओं के बाद ही मिलती है।
तकनीक की विशेषताएँ और भविष्य की योजनाएँ
यह नव विकसित तकनीक अनेक दृष्टियों से क्रांतिकारी है:
- एकल प्रक्रिया, बहु-उत्पादन: यह तकनीक एक ही प्रक्रिया के माध्यम से लगभग सभी प्रकार के जल में घुलनशील उर्वरकों का निर्माण कर सकती है, जो कि पारंपरिक तरीकों में संभव नहीं था।
- शून्य उत्सर्जन (Zero Effluent): यह एक पर्यावरणीय रूप से सतत परियोजना है, जिसमें किसी प्रकार का अपशिष्ट या प्रदूषण नहीं होता।
- घरेलू संसाधनों पर आधारित: यह पूरी तकनीक भारतीय कच्चे माल और उपकरणों से विकसित की गई है, जिससे विदेशी लाइसेंसिंग लागत से मुक्ति मिलती है।
- राष्ट्रीय महत्व की परियोजना: पर्यावरणीय स्थिरता और आत्मनिर्भरता के कारण इसे ‘राष्ट्रीय महत्व की परियोजना’ का दर्जा दिया गया है।
वर्तमान में इस तकनीक पर आधारित एक पायलट प्लांट तैयार किया गया है और अब इसका बड़े स्तर पर उत्पादन आरंभ करने की योजना है। अगले दो वर्षों में किसानों तक यह तकनीक पहुंचाई जाएगी। विभिन्न उर्वरक कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम की बातचीत भी प्रारंभ हो चुकी है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में 2005 से विशेष उर्वरकों के क्षेत्र में चीनी आपूर्ति पर निर्भरता निरंतर बढ़ी है।
- भारत में कुल विशेष उर्वरकों का 95% तक चीन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आता है।
- इस तकनीक का विकास खनन मंत्रालय के सहयोग से हुआ है और इसे “राष्ट्रीय महत्व की परियोजना” घोषित किया गया है।
- यह तकनीक एक ‘शून्य-उत्सर्जन’ परियोजना है, जो आधुनिक पर्यावरणीय मानकों पर खरी उतरती है।
निष्कर्ष
स्वदेशी जल में घुलनशील उर्वरक तकनीक का विकास भारत के कृषि, उद्योग और विज्ञान क्षेत्र के लिए एक मील का पत्थर है। यह न केवल देश की विदेशी निर्भरता को समाप्त करने में सहायक होगी, बल्कि निर्यात को बढ़ावा देकर भारत को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाएगी। यह पहल प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘विकसित भारत 2047’ के दृष्टिकोण की दिशा में ठोस और दूरगामी कदम है। आने वाले वर्षों में यह तकनीक भारतीय किसानों को किफायती, प्रभावी और पर्यावरण अनुकूल उर्वरक विकल्प प्रदान करेगी।