भारत में नकली फैशन का व्यापार: बिर्केनस्टॉक बनाम ‘फर्स्ट कॉपी’ बाजार की कानूनी जंग

दिल्ली और आगरा के बाजारों में ₹1,000 में मिलने वाली ओपन-टो चमड़े की सैंडल बिर्केनस्टॉक जैसी दिखती हैं — एक जर्मन ब्रांड जिसकी वास्तविक कीमत ₹5,000 से ₹20,000 तक होती है। इस समानता ने अब कानूनी मोड़ ले लिया है। मई 2025 में बिर्केनस्टॉक ने दिल्ली उच्च न्यायालय में चार व्यापारियों, चार फैक्ट्रियों और दो व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया, जिन पर उनके डिज़ाइन की नकल कर नकली चप्पलें बेचने का आरोप है।
नकली उत्पादों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई
बिर्केनस्टॉक की याचिका पर अदालत ने आरोपियों के परिसरों पर छापे मारने के लिए स्थानीय कमिश्नर नियुक्त किए। बड़ी मात्रा में नकली चप्पलों की जब्ती के साथ ही, अदालत ने आरोपियों को बिर्केनस्टॉक के ट्रेडमार्क या डिज़ाइन से मिलते-जुलते उत्पादों के निर्माण और बिक्री से रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की है। अगली सुनवाई 6 अक्टूबर को होनी है।
भारत में नकली फैशन उत्पादों का बढ़ता कारोबार
भारत लंबे समय से नकली उत्पादों के निर्माण और खपत दोनों का प्रमुख केंद्र रहा है। खासकर परिधान और फुटवियर जैसे श्रेणियों में ‘फर्स्ट कॉपी’ उत्पादों की मांग बहुत अधिक है। क्रिसिल और ASPA की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, 31% भारतीय उपभोक्ताओं ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने जानबूझकर नकली उत्पाद खरीदे हैं। देश के रिटेल बाजार में 25-30% तक नकली वस्तुओं की हिस्सेदारी बताई गई है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की भूमिका
आज नकली उत्पादों की बिक्री केवल बाजारों तक सीमित नहीं है। इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर ‘AAA क्वालिटी’, ‘फर्स्ट कॉपी’ जैसे शब्दों के जरिए इन्हें प्रमोट किया जाता है। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स भी इनके प्रचार में मदद करते हैं, अक्सर ब्रांड नाम का उल्लेख किए बिना।
शिल्पकारों की चुनौतियाँ और ब्रांड की ताकत
हाल ही में एक और विवाद — प्रसिद्ध फैशन ब्रांड प्रादा द्वारा कोल्हापुरी चप्पलों की डिजाइन बिना श्रेय के इस्तेमाल — ने यह दर्शाया कि भारत के कारीगर किस प्रकार असुरक्षित हैं। जहां अंतरराष्ट्रीय ब्रांड अपने ट्रेडमार्क और डिज़ाइनों को कानूनी रूप से सुरक्षित कर सकते हैं, वहीं भारतीय शिल्पकारों के पास अक्सर वैश्विक मंचों पर अपने काम की सुरक्षा का संसाधन और पहुंच नहीं होता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में नकली फैशन उत्पादों की हिस्सेदारी लगभग 25-30% है।
- OECD और EUIPO ने भारत को नकली उत्पादों के वैश्विक आपूर्ति स्रोतों में शामिल किया है।
- ट्रेडमार्क अधिनियम 1999 और डिज़ाइन अधिनियम 2000 के अंतर्गत ब्रांड अपने उत्पादों को भारत में कानूनी सुरक्षा दे सकते हैं।
- ‘आर्टिजनल नकल’ एक उभरती हुई चुनौती है, जहां पारंपरिक शिल्प को कॉर्पोरेट डिज़ाइनों में बदला जाता है।
भारत को न केवल अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों की बौद्धिक संपदा की रक्षा के लिए कदम उठाने की जरूरत है, बल्कि अपने कारीगरों और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और सशक्तिकरण के लिए भी कानूनी और संस्थागत ढांचे को मजबूत करना चाहिए। नकली बनाम मौलिक के इस संघर्ष में न्याय और समानता दोनों आवश्यक हैं।