भारत में कुष्ठ रोग नियंत्रण की ऐतिहासिक यात्रा: उन्मूलन की दिशा में सशक्त कदम

कुष्ठ रोग या हैनसेन रोग (Leprosy / Hansen’s Disease) एक पुरानी संक्रामक बीमारी है, जो Mycobacterium leprae नामक जीवाणु से होती है। यह रोग मुख्य रूप से त्वचा, नसों, श्वसन तंत्र और आंखों को प्रभावित करता है। समय पर उपचार न होने पर यह स्थायी विकलांगता और विकृति का कारण बन सकता है, जिसके चलते समाज में इस रोग से जुड़े अनेक प्रकार के पूर्वाग्रह और कलंक पनपे हैं।
भारत में कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम का आरंभ और विकास
स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने 1954-55 में राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम (NLCP) प्रारंभ किया, जिसे बाद में केंद्र प्रायोजित योजना का दर्जा दिया गया। प्रारंभ में कुष्ठ रोग का उपचार डैप्सोन (Dapsone) नामक दवा से किया जाता था, जिसे 1980 के दशक तक एकमात्र औषधि के रूप में प्रयोग किया गया। परंतु 1983 में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मल्टी-ड्रग थेरेपी (MDT) को मानक उपचार पद्धति के रूप में अपनाने की अनुशंसा की, तब भारत में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) की शुरुआत हुई। MDT में रिफैम्पिसिन, क्लोफाजिमिन और डैप्सोन जैसी दवाओं का संयोजन प्रयोग होता है। इसने उपचार प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाया और रोग नियंत्रण की दिशा में बड़ा मोड़ दिया।
सफलता की कहानी: आँकड़ों में भारत की उपलब्धि
1981 में भारत में कुष्ठ रोग की प्रचलन दर 57.2 प्रति 10,000 जनसंख्या थी, जो 2004 तक घटकर 2.4 रह गई। 2005 में भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर कुष्ठ रोग उन्मूलन का लक्ष्य (प्रचलन दर <1 प्रति 10,000) प्राप्त कर लिया। मार्च 2025 तक 31 राज्यों और 638 जिलों ने इस स्तर को बनाए रखा है।
- नई केस दर 2014-15 के 9.73 प्रति लाख से घटकर 2024-25 में 7.0 प्रति लाख रह गई।
- ग्रेड-2 विकलांगता दर (दृश्यमान विकृतियाँ) 4.68 प्रति दस लाख से घटकर 1.88 रह गई।
- बाल रोगियों का प्रतिशत 9.04% से घटकर 4.68% हो गया, जो रोग प्रसार में गिरावट का सूचक है।
वर्तमान पहलें और तकनीकी नवाचार
भारत सरकार ने कुष्ठ रोग नियंत्रण को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के अंतर्गत एकीकृत कर दिया है। नई रणनीति में डिजिटल निगरानी प्रणाली निकुष्ठ 2.0, Post Exposure Prophylaxis (PEP) के अंतर्गत स्वस्थ संपर्कों को सिंगल डोज रिफैम्पिसिन (SDR) देना, तथा ASHA आधारित निगरानी (ABSULS) जैसी पहलें शामिल हैं।2024 में जारी नई उपचार पद्धति (PB और MB दोनों के लिए तीन-दवा प्रणाली) 2025 से पूरे देश में लागू होगी। इसके साथ ही राष्ट्रीय रणनीतिक योजना एवं रोडमैप (2023-2027) को लागू किया गया है, जिसका लक्ष्य 2027 तक संक्रमण की श्रृंखला तोड़ना और 2030 तक देश को कुष्ठ मुक्त बनाना है।
सामुदायिक सहभागिता और पुनर्वास
सरकार के “स्पर्श” अभियान और सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) पहलों ने समाज में जागरूकता बढ़ाई है। विकलांगता रोकथाम और पुनर्वास (DPMR) के तहत रोगियों को माइक्रोसेलुलर रबर (MCR) फुटवियर, स्वयं देखभाल किट, सहायक उपकरण, और ₹12,000 तक की वेतन प्रतिपूर्ति जैसी सहायता दी जाती है। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी कार्यक्रम में एकीकृत किया गया है। साथ ही, केंद्र सरकार ने सभी भेदभावपूर्ण कानूनों को समाप्त करने की दिशा में भी ठोस कदम उठाए हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कुष्ठ रोग का कारक जीवाणु Mycobacterium leprae है, जिसकी खोज 1873 में नॉर्वेजियन वैज्ञानिक गेरहार्ड हैनसेन ने की थी।
- विश्व कुष्ठ दिवस (World Leprosy Day) हर वर्ष जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है।
- भारत ने कुष्ठ रोग उन्मूलन का राष्ट्रीय लक्ष्य दिसंबर 2005 में प्राप्त किया।
- भारत में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP) के अंतर्गत उपचार और दवाएँ पूरी तरह निःशुल्क प्रदान की जाती हैं।