भारत में अनावश्यक गर्भाशय ऑपरेशन की बढ़ती प्रवृत्ति: एक मौन स्वास्थ्य संकट

भारत में एक मौन लेकिन गम्भीर स्वास्थ्य संकट तेजी से फैल रहा है — अनावश्यक रूप से किए जा रहे गर्भाशय हटाने के ऑपरेशन यानी हिस्टेरेक्टॉमी। यह एक शल्यक्रिया है जिसमें महिलाओं के गर्भाशय को हटा दिया जाता है, और कई बार अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब और ग्रीवा को भी निकाल दिया जाता है। हालांकि यह प्रक्रिया कभी-कभी अनिवार्य हो सकती है, परंतु हालिया आंकड़े बताते हैं कि यह निर्णय अकसर जल्दबाज़ी या गलत जानकारी के कारण लिया जा रहा है, विशेषकर ग्रामीण और कम शिक्षित महिलाओं के बीच।

देश में हिस्टेरेक्टॉमी के चौंकाने वाले आंकड़े

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (NFHS-5) के अनुसार, 40-49 वर्ष की आयु वर्ग की लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं ने गर्भाशय हटवाने की शल्यक्रिया करवाई है। कुछ राज्यों में यह आंकड़ा और भी अधिक चिंताजनक है — आंध्र प्रदेश में 22.5%, तेलंगाना में 21.2%, बिहार में 17.2% और गुजरात में 11.7%। और भी गंभीर बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में इस ऑपरेशन की औसत आयु केवल 34 वर्ष और शहरी क्षेत्रों में 36 वर्ष पाई गई है, जो प्राकृतिक रजोनिवृत्ति से 10 वर्ष पहले की अवस्था है।

आर्थिक विवशता और गलत सलाह की भूमिका

महिलाओं को यह विश्वास दिलाया जाता है कि हिस्टेरेक्टॉमी से मासिक धर्म की असुविधा समाप्त हो जाती है और वे कठिन श्रम के लिए अधिक सक्षम हो जाती हैं। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र की महिला श्रमिकों पर यह प्रवृत्ति हावी है। महाराष्ट्र के बीड ज़िले में गन्ना कटाई में लगी महिलाओं के बीच यह आंकड़ा 56% तक पहुंच चुका है। इसी प्रकार तेलंगाना और बिहार में भी कृषि श्रमिक महिलाओं में हिस्टेरेक्टॉमी की दर क्रमशः 18% और 10% दर्ज की गई है।
इसका एक कारण यह भी है कि निजी अस्पतालों में लाभ कमाने की प्रवृत्ति के तहत महिलाओं को बिना वैकल्पिक इलाज बताए ही ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। आंध्र प्रदेश में 2013 में प्रकाशित एक शोध में यह सामने आया कि गरीब ग्रामीण महिलाओं को केवल पेट दर्द या श्वेत प्रदर जैसी साधारण शिकायतों पर भी हिस्टेरेक्टॉमी की सलाह दी गई।

स्वास्थ्य बीमा और निजी चिकित्सा प्रणाली की भूमिका

NFHS-5 के अनुसार, भारत में 70% हिस्टेरेक्टॉमी निजी अस्पतालों में की जाती हैं। कई बार बीमा योजनाओं के अंतर्गत होने वाले खर्च की सुविधा के कारण निजी चिकित्सक अधिक ऑपरेशन कर देते हैं। यह स्थिति अमेरिका जैसे देशों में भी देखी गई है, जहां बीमा से संचालित निजी स्वास्थ्य सेवा में ऑपरेशन की दर यूरोपीय देशों की तुलना में कहीं अधिक है।
भारत में आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के तहत भी कई बार गैर-ज़रूरी ऑपरेशन दर्ज किए गए हैं। इसके मद्देनज़र 2019 में स्वास्थ्य प्राधिकरण ने प्री-ऑथोराइजेशन जैसे नियम लागू किए ताकि महिलाओं को अनावश्यक ऑपरेशन से बचाया जा सके। 2022 में केंद्र सरकार ने इस पर दिशा-निर्देश भी जारी किए और निगरानी समितियों का गठन किया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, 40-49 आयु वर्ग की 10% महिलाओं ने हिस्टेरेक्टॉमी करवाई।
  • बीड ज़िले में 2024 में गन्ना श्रमिक महिलाओं में हिस्टेरेक्टॉमी की दर 56% तक पहुंची।
  • भारत में 70% हिस्टेरेक्टॉमी निजी अस्पतालों में होती हैं।
  • अमेरिका में 2008 में हिस्टेरेक्टॉमी की दर 3.25 प्रति 1,000 महिलाएं थी, जबकि यूरोपीय OECD देशों में 2.12 थी (2010)।

समाधान के संभावित उपाय

इस समस्या से निपटने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। सर्वप्रथम, अधिक अद्यतन और विस्तृत आंकड़े एकत्र करने चाहिए, जिसमें यह भी पूछा जाए कि महिलाओं ने ऑपरेशन का खर्च कैसे उठाया। इसके अलावा, महिलाओं को गर्भाशय की भूमिका और इसके स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। भारी मासिक धर्म जैसी समस्याओं के लिए हार्मोनल पिल्स या IUD जैसे वैकल्पिक उपचारों को बढ़ावा देना चाहिए। अंततः, मेडिकल ऑडिट और निगरानी को सख्त बनाया जाना चाहिए ताकि अनावश्यक ऑपरेशन रोके जा सकें।
इस विषय पर गंभीरता से विचार करना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि यह न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य बल्कि देश की जनसंख्या संरचना पर भी असर डाल सकता है, विशेषकर तब जब भारत की प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।

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