भारत में अत्यधिक गर्मी: स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और समाज पर बढ़ता संकट

भारत में अत्यधिक गर्मी और हीटवेव की घटनाएं अब केवल मौसमी असुविधा नहीं रह गई हैं, बल्कि यह स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल रही हैं। हाल के वर्षों में, हीटवेव की तीव्रता, अवधि और आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे देश की बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है।

हीटवेव का बढ़ता प्रभाव

Council on Energy, Environment and Water (CEEW) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 57% जिले, जो देश की 76% आबादी का घर हैं, अत्यधिक गर्मी के उच्च या बहुत उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि रात के समय की गर्मी में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे शरीर को दिन की गर्मी से उबरने का समय नहीं मिल पाता, और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं ।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

अत्यधिक गर्मी का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। गर्मी के कारण हीटस्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। 2024 में, भारत में मार्च से जून के बीच 40,000 से अधिक संदिग्ध हीटस्ट्रोक के मामले दर्ज किए गए, और कम से कम 110 मौतें हुईं । इसके अलावा, उच्च तापमान और आर्द्रता मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालते हैं, जिससे अवसाद और चिंता जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं ।

अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने अत्यधिक गर्मी के कारण उत्पादकता में गिरावट से अनुमानित $100 बिलियन का नुकसान उठाया है। निर्माण श्रमिकों, किसानों, सड़क विक्रेताओं और खाद्य वितरण कर्मियों जैसे अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से गेहूं की पैदावार में लगभग 5.2% की कमी हो सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी खतरा मंडराता है।

सामाजिक और शहरी प्रभाव

तेजी से हो रहे शहरीकरण ने “अर्बन हीट आइलैंड” प्रभाव को बढ़ावा दिया है, जहां शहरों में तापमान आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है। CEEW की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005 से 2023 के बीच भारत के लगभग सभी जिलों में निर्मित क्षेत्रों का तेजी से विस्तार हुआ है, विशेषकर पुणे, थूथुकुडी, कोल्हापुर और गुवाहाटी जैसे टियर-II और टियर-III शहरों में ।

सरकारी प्रयास और चुनौतियां

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और गृह मंत्रालय ने हीटवेव से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनमें कार्य समय का नियमन, पानी और चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता, और उपयुक्त कार्य परिधान शामिल हैं। कई राज्यों और शहरों ने अपने हीट एक्शन प्लान (HAP) तैयार किए हैं, लेकिन CEEW की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 95% HAP में हीट जोखिम और भेद्यता का पर्याप्त मूल्यांकन नहीं किया गया है ।

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