भारत-ब्रिटेन डिजिटल व्यापार समझौता: वैश्विक मंच पर भारत की नई रणनीतिक पहल

भारत और यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) के बीच हुआ नया डिजिटल व्यापार समझौता, विशेष रूप से व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता (CETA) का अध्याय 12, भारत की वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भागीदारी को नई दिशा देता है। यह समझौता एक ओर जहां व्यापार को सरल बनाता है, वहीं दूसरी ओर नियामक संप्रभुता को लेकर बहस भी छेड़ता है। समर्थक इसे डिजिटल युग की जरूरत मानते हैं, जबकि आलोचक इसे भारत की डिजिटल संप्रभुता से समझौता बताते हैं। लेकिन जैसे अधिकांश व्यापार समझौते होते हैं, यह भी पूर्ण विजय या पराजय की कहानी नहीं है, बल्कि संतुलित लाभ-हानि का समझौता है।
डिजिटल व्यापार में मिले प्रमुख लाभ
इस समझौते के तहत दोनों देशों ने इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों और अनुबंधों की मान्यता को स्वीकृति दी है, जिससे साफ्टवेयर-ए-ज़-सर्विस (SaaS) कंपनियों और लघु एवं मध्यम उद्यमों को बड़ी राहत मिलेगी। दस्तावेजी प्रक्रिया में कमी और पेपरलेस व्यापार को बढ़ावा देने से सीमा पार लेन-देन अधिक आसान हो जाएगा।
भारत के लिए यह समझौता विशेष रूप से लाभकारी है क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर कस्टम ड्यूटी न लगाने की नीति को बनाए रखा गया है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, इससे भारत के $30 बिलियन के सॉफ्टवेयर निर्यात चैनल को संरक्षित रखने में मदद मिलेगी।
वहीं डेटा नवाचार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए यह समझौता नियामकीय सैंडबॉक्स का प्रावधान देता है, जिससे फिनटेक और डेटा-आधारित कंपनियाँ परीक्षण और विस्तार दोनों कर सकती हैं, और वैश्विक स्तर पर अपनी विश्वसनीयता सिद्ध कर सकती हैं।
वस्त्र उद्योग और सेवाओं को मिलेगा प्रोत्साहन
डिजिटल खंड के अलावा, व्यापक व्यापार समझौते के अंतर्गत, भारतीय वस्त्र निर्यातकों को भी बड़े फायदे की उम्मीद है। लगभग 99% भारतीय वस्त्र निर्यात ब्रिटेन में शुल्क-मुक्त हो सकते हैं, जिससे तिरुपुर (तमिलनाडु) और लुधियाना (पंजाब) जैसे केंद्रों को नया जीवन मिलेगा।
इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन की सार्वजनिक खरीद प्रणाली में भारतीय आईटी कंपनियों की पहुंच बढ़ेगी और लघु अवधि के असाइनमेंट पर सामाजिक सुरक्षा में छूट मिलने से नियोक्ताओं के वेतन खर्च में लगभग 20% की कटौती होगी।
डिजिटल संप्रभुता पर उठे सवाल
हालांकि, कुछ नीतिगत छूट चिंताजनक भी हैं। आलोचकों के अनुसार, इस समझौते में भारत ने स्रोत कोड निरीक्षण को एक सामान्य नियामकीय साधन के रूप में छोड़ दिया है। अब केवल जांच या अदालत की प्रक्रिया के तहत ही कोड एक्सेस की अनुमति है। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों जैसे पावर ग्रिड और पेमेंट सिस्टम पर भारत का नियंत्रण बना रहेगा।
सरकारी डेटा के संबंध में कोई बाध्यकारी प्रावधान नहीं है। भारत यह तय करेगा कि कौन-सा डेटा और किस स्वरूप में सार्वजनिक किया जाएगा। इसके अलावा, समझौते में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी नए व्यापार समझौते में अगर एक पक्ष अधिक कठोर डेटा नियम लागू करता है, तो दोनों पक्षों के बीच परामर्श के बाद उस पर आगे विचार किया जाएगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत-यू.के. CETA समझौते के तहत डिजिटल व्यापार को लेकर यह पहली विस्तृत संधि है।
- भारत हर साल लगभग $30 बिलियन का सॉफ्टवेयर निर्यात करता है।
- तिरुपुर और लुधियाना भारत के प्रमुख वस्त्र निर्यात केंद्र हैं।
- डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 इस समझौते की घरेलू नींव के रूप में कार्य करेगा।
भारत का यह डिजिटल व्यापार समझौता एक यथार्थवादी और दूरदर्शी कदम के रूप में देखा जा सकता है। यह वैश्विक जुड़ाव और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ने की रणनीति को दर्शाता है। हालांकि संप्रभुता से जुड़े प्रश्न उठाना जायज़ है, पर यह समझौता दिखाता है कि वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भागीदारी संप्रभुता के विरुद्ध नहीं, बल्कि उसके पूरक के रूप में भी देखी जा सकती है।