भारत की संसद के तीन मुख्य सत्र: लोकतंत्र की रीढ़

भारत की संसदीय प्रणाली का संचालन तीन मुख्य वार्षिक सत्रों के माध्यम से होता है—बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र। ये सत्र देश की विधायी प्रक्रियाओं, बजट अनुमोदन और शासन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

बजट सत्र (फरवरी – मई)

बजट सत्र संसद का सबसे लंबा और महत्वपूर्ण सत्र माना जाता है। इसकी शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होती है, जिसमें सरकार की वार्षिक नीति दिशा को प्रस्तुत किया जाता है। इसके बाद वित्त मंत्री संसद में केंद्रीय बजट पेश करते हैं, जिसमें राजस्व और व्यय का विस्तृत विवरण होता है। विभिन्न मंत्रालयों के लिए बजटीय आवंटन पर संसदीय समितियाँ चर्चा करती हैं और अनुदान मांगों पर बहस होती है।
यह सत्र आमतौर पर जनवरी के अंतिम सप्ताह या फरवरी के पहले सप्ताह में शुरू होकर मई की शुरुआत तक चलता है, बीच में एक अंतराल भी रहता है।

मानसून सत्र (जुलाई – अगस्त)

मानसून सत्र जुलाई से अगस्त के बीच आयोजित होता है और इसका उद्देश्य विधायी कार्य, नीतिगत चर्चाएं और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहस होता है। इसमें सांसद प्रश्नकाल और शून्यकाल के दौरान जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दे उठाते हैं।
यह सत्र सरकार की कार्यप्रणाली की समीक्षा का भी माध्यम होता है और कानूनों को पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शीतकालीन सत्र (नवंबर – दिसंबर)

शीतकालीन सत्र वर्ष के अंत में आयोजित होता है और इसका मुख्य उद्देश्य लंबित विधेयकों को पारित करना और वर्ष की समाप्ति से पहले महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करना होता है। यह अपेक्षाकृत छोटा लेकिन राजनीतिक रूप से तीव्र हो सकता है।
आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक विषयों पर विधायी कार्य इसके मुख्य भाग होते हैं। यह आमतौर पर तीन से चार सप्ताह तक चलता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारतीय संविधान के अनुसार, दो सत्रों के बीच का अंतर छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • बजट सत्र संसद का सबसे लंबा सत्र होता है, जो आमतौर पर फरवरी से मई तक चलता है।
  • मानसून सत्र संसद का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण सत्र है, जो जुलाई से अगस्त या सितंबर तक चलता है।
  • विशेष परिस्थितियों में संसद का विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता है, जैसे संविधान संशोधन या आपातकालीन स्थिति।

निष्कर्ष

बजट, मानसून और शीतकालीन सत्र भारत के संसदीय लोकतंत्र की नींव हैं। ये न केवल विधायी कार्यों के लिए मंच प्रदान करते हैं, बल्कि सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का भी माध्यम हैं। नागरिकों के लिए इन सत्रों की जानकारी होना आवश्यक है, ताकि वे देश की शासन प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझ सकें और एक जागरूक लोकतांत्रिक भूमिका निभा सकें।

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