भारत की विकास यात्रा का असली इम्तिहान: रोजगार नहीं, औपचारिकता और उत्पादकता है चुनौती

हाल ही में संसद में सरकार ने दावा किया कि उसने पिछले 10 वर्षों में 17 करोड़ नौकरियों का सृजन किया है। यह संख्या भले ही प्रभावशाली लगे, लेकिन भारत की $36 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा केवल बेरोजगारी नहीं, बल्कि असंगठित और संगठित क्षेत्रों के बीच गहरी उत्पादकता खाई है।

उत्पादकता में आठ गुना अंतर

  • संगठित औद्योगिक क्षेत्र में एक कर्मचारी सालाना ₹11.9 लाख का सकल मूल्य वर्धन (GVA) करता है।
  • असंगठित क्षेत्र में यह आंकड़ा मात्र ₹1.4 लाख प्रति वर्ष है।
  • इससे स्पष्ट होता है कि 91% भारतीय कार्यबल असंगठित क्षेत्र में है, जो औसत आय और आर्थिक समावेशन को पीछे खींचता है।

मजदूरी और उत्पादकता का टूटा रिश्ता

आर्थिक सिद्धांत के अनुसार मजदूरी श्रमिक की उत्पादकता के अनुसार तय होनी चाहिए। पर भारत जैसे देश, जहां बेरोजगारी और अधूरी बेरोजगारी दोनों मौजूद हैं, वहाँ मजदूरों की भरमार मजदूरी को नीचे दबाती है, भले ही उत्पादकता बढ़े।

  • 42% कार्यबल कृषि में है, लेकिन इसका GDP में योगदान मात्र 18% है — यह प्रच्छन्न बेरोजगारी का स्पष्ट संकेत है।

औपचारिकरण: नीतिगत प्राथमिकता क्यों?

औपचारिक रोजगार न केवल सामाजिक सुरक्षा देता है, बल्कि मजदूरी, प्रशिक्षण और करियर विकास को भी सुनिश्चित करता है। इसके लिए जरूरी है:

  • ई-श्रम, ईपीएफओ, ईएसआईसी को सार्वभौमिक रूप से लागू किया जाए।
  • छोटे व्यवसायों और गिग प्लेटफॉर्म्स को कर प्रोत्साहन और सरल नियमों से औपचारिकता की ओर बढ़ावा दिया जाए।
  • एक ‘औपचारिकता सूचकांक’ बनाया जाए जो राज्यों में प्रगति को मापे और नीति निर्माण को दिशा दे।

कौशल और उत्पादकता का बेमेल

भारत की सबसे बड़ी बाधा कौशल संकट है:

  • केवल 4.7% कार्यबल औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है।
  • तुलना में, अमेरिका में 52%, जापान में 80%, और दक्षिण कोरिया में 96% कार्यबल प्रशिक्षित है।

समाधान:

  • NSDC और आईटीआई को ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में विस्तारित किया जाए।
  • AI, डिजिटल सेवाएं, हरित तकनीक जैसे उभरते क्षेत्रों के लिए पाठ्यक्रम अद्यतन किया जाए।
  • उद्योग और शिक्षा संस्थानों के बीच साझेदारी को मज़बूत किया जाए।

मजदूरी में पारदर्शिता और नवाचार

  • उत्पादकता आधारित वेतन मॉडल विकसित किए जाएं — विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र, ऑटो जैसे क्षेत्रों में।
  • MGNREGS जैसी योजनाओं में प्रदर्शन-आधारित बोनस जोड़ा जा सकता है (बशर्ते श्रमिक अधिकारों की सुरक्षा बनी रहे)।
  • AI, IoT, ASEEM और DigiLocker जैसे डिजिटल टूल से श्रमिक प्रोफाइल, कौशल प्रमाणपत्र और वेतन इतिहास को ट्रैक किया जा सकता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश: अवसर या खतरा?

भारत की युवा आबादी अगर असंगठित और कम उत्पादक रोजगार में फंसी रही, तो यही लाभांश एक आर्थिक और सामाजिक संकट में बदल सकता है। विकास अगर मजदूरी वृद्धि से नहीं जुड़ा, तो:

  • असमानता बढ़ेगी
  • सामाजिक असंतोष उभरेगा
  • राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • GVA (Gross Value Added): उत्पादन की कुल आर्थिक कीमत, मजदूरी और मुनाफे सहित।
  • NSDC (राष्ट्रीय कौशल विकास निगम): केंद्र सरकार की प्रमुख प्रशिक्षण संस्था।
  • e-Shram: असंगठित श्रमिकों का राष्ट्रीय डेटाबेस।
  • MGNREGS: ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना।

निष्कर्ष: सिर्फ रोजगार नहीं, गुणवत्ता वाला रोजगार चाहिए

भारत का आर्थिक भविष्य केवल नई नौकरियों की संख्या पर नहीं, बल्कि उन नौकरियों की प्रकृति, उत्पादकता और स्थायित्व पर निर्भर करेगा। औपचारिकता, कौशल, उत्पादकता और वेतन पारदर्शिता — ये चार स्तंभ भारत को एक न्यायसंगत और समावेशी आर्थिक शक्ति बना सकते हैं। यह केवल एक आर्थिक नीति नहीं, एक राष्ट्रीय आवश्यकता है।

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