भारत की जलवायु वित्तीय टैक्सोनॉमी: सतत विकास के लिए पारदर्शी और उत्तरदायी ढांचा

भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने मई 2025 में देश की “Climate Finance Taxonomy” (जलवायु वित्तीय टैक्सोनॉमी) का मसौदा सार्वजनिक परामर्श हेतु जारी किया। यह टैक्सोनॉमी देश में जलवायु उन्मुख निवेश को स्पष्ट दिशा देने, हरित धोखाधड़ी (ग्रीनवॉशिंग) से बचने, और निवेशकों को यह समझाने का प्रयास है कि कौन से क्षेत्र, प्रौद्योगिकियाँ और कार्य-प्रणालियाँ जलवायु परिवर्तन के शमन, अनुकूलन या परिवर्तन में योगदान करती हैं।
टैक्सोनॉमी की भूमिका और लचीलापन
यह मसौदा स्वयं को एक “living framework” कहता है — यानी ऐसा दस्तावेज़ जो समयानुसार भारत की प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप संशोधित हो सकता है। लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि यह लचीलापन किस तरह लागू होता है।
इस संदर्भ में पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.4 के तहत विकसित नवीन समीक्षा प्रणाली को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे भारत की टैक्सोनॉमी को कानूनी स्पष्टता, निवेशक विश्वास और घरेलू-अंतरराष्ट्रीय समन्वय मिल सके।
दो-स्तरीय समीक्षा प्रणाली का सुझाव
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वार्षिक समीक्षा (Annual Review):
- कार्यान्वयन में बाधा, नीति परिवर्तन, या अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के बदलाव पर आधारित हो।
- निर्धारित समयसीमा, सार्वजनिक परामर्श और दस्तावेज़ीकरण की स्पष्ट प्रक्रिया हो।
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पंचवर्षीय गहन समीक्षा (Five-Year Deep Review):
- वैश्विक कार्बन बाजारों के रुझानों, जलवायु वित्त के परिभाषात्मक परिवर्तनों, और भारत के अनुभवों के आधार पर।
- यह भारत के NDCs और वैश्विक स्टॉकटेक प्रक्रिया से भी मेल खाता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- टैक्सोनॉमी का उद्देश्य जलवायु अनुकूल निवेश को स्पष्ट पहचान देना और ग्रीनवॉशिंग से बचाना है।
- यह पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.4 की समीक्षा प्रणाली से प्रेरित है।
- भारत की NDCs और संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक स्टॉकटेक प्रक्रिया की समयसीमा 5 वर्षों की है।
- प्रस्ताव में MSMEs, कृषि, और अनौपचारिक क्षेत्र के लिए सरल अनुपालन और संतुलित अपेक्षाएँ रखने की बात है।
कानूनी और संपादकीय पहलू
- कानूनी मूल्यांकन: टैक्सोनॉमी की ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, SEBI नियमों, कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना और अन्य दायित्वों से सुसंगतता सुनिश्चित हो।
- संपादकीय स्पष्टता: परिभाषाएँ तकनीकी रूप से स्पष्ट और सरल हों, जिससे विशेषज्ञ और गैर-विशेषज्ञ दोनों इसका उपयोग कर सकें।
- डेटा अद्यतन: जहाँ मात्रात्मक लक्ष्य (जैसे GHG कटौती या ऊर्जा दक्षता) निर्धारित हों, वहाँ अद्यतन आंकड़ों के साथ समीक्षा हो।
MSMEs और अनौपचारिक क्षेत्रों के लिए प्रविष्टि को आसान बनाना अनिवार्य होगा — जैसे चरणबद्ध अनुपालन समय, सरलीकृत प्रक्रियाएँ और यथोचित अपेक्षाएँ।
जवाबदेही और पारदर्शिता
इस समीक्षा व्यवस्था को समर्थन देने के लिए एक स्थायी इकाई का गठन जरूरी है — जो वित्त मंत्रालय के अधीन या एक विशेषज्ञ समिति के रूप में कार्य करे। इसमें नियामक, जलवायु वैज्ञानिक, विधि विशेषज्ञ और नागरिक समाज के प्रतिनिधि शामिल हों।
सार्वजनिक डैशबोर्ड्स विकसित कर इनपुट लेना, अनुभव साझा करना, और समीक्षा रिपोर्ट प्रकाशित करना भी प्रस्तावित है। वार्षिक समीक्षा और पंचवर्षीय पुनरीक्षण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होने चाहिए, ताकि निवेशकों में विश्वास और पारदर्शिता बनी रहे।
निष्कर्ष
भारत की जलवायु वित्तीय टैक्सोनॉमी ऐसे समय में सामने आई है जब देश में कार्बन क्रेडिट योजना, ग्रीन बॉन्ड्स और दीर्घकालिक जलवायु निवेश पर तीव्रता से कार्य हो रहा है। यदि यह टैक्सोनॉमी कमजोर या अपारदर्शी हुई, तो यह प्रयास निष्फल हो सकते हैं।
‘लिविंग डॉक्युमेंट’ का अर्थ है — सतत समीक्षा, पारदर्शी संशोधन और सहभागी संवाद। यही दृष्टिकोण भारत को जलवायु नेतृत्व में अग्रणी बनाएगा और वैश्विक निवेश के लिए एक भरोसेमंद मार्गदर्शक स्थापित करेगा।