भारत का शहरी भविष्य और ‘अर्बन चैलेंज फंड’: विकास का नया मॉडल

भारत के शहरों में अपार संभावनाएं हैं, लेकिन उनकी प्रगति पुरानी वित्तीय व्यवस्थाओं और अत्यधिक बोझिल अधोसंरचना के कारण बाधित हो रही है। 2011 से 2018 के बीच शहरी सार्वजनिक उपयोगिता ढांचे पर पूंजीगत व्यय GDP का मात्र 0.6% रहा — जबकि आवश्यकता का केवल एक चौथाई। इसी संदर्भ में केंद्र सरकार ने 2024-25 के बजट में ‘अर्बन चैलेंज फंड’ (UCF) की घोषणा की है, जो शहरी विकास को एक नई दिशा देने वाला कदम माना जा रहा है।

अर्बन चैलेंज फंड: उद्देश्य और ढांचा

₹1 लाख करोड़ के इस फंड का उद्देश्य है ‘Growth Hubs’, ‘Creative Redevelopment’ और ‘Water and Sanitation’ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक आधार पर वित्तीय सहायता प्रदान करना। यह फंड पारंपरिक अनुदानों से अलग, प्रदर्शन आधारित वित्तपोषण मॉडल पर आधारित होगा।

  • केंद्रीय सरकार कुल परियोजना लागत का 25% योगदान देगी।
  • शहरों को कम से कम 50% लागत बॉन्ड्स, लोन या PPP मॉडल से जुटानी होगी।
  • प्राथमिकता उन परियोजनाओं को दी जाएगी जो नवाचार, प्रभावशीलता और राजस्व-सृजन की दृष्टि से सक्षम हों।

भारत में शहरीकरण की वास्तविकता

2011 में भारत की 31% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती थी। अनुमान है कि 2027 की जनगणना में यह आंकड़ा 60% से अधिक हो जाएगा। केरल जैसे राज्यों में यह 2022 में 73.19% था, जो 2036 तक 96% तक पहुँच सकता है। नीतिगत स्तर पर अब शहरी विस्तार को केवल जनसंख्या पर नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों और भूमि उपयोग के आधार पर परिभाषित किया जा रहा है।

पिछली योजनाओं से सीख

  • स्मार्ट सिटी मिशन (2015): केवल 6% परियोजनाएं PPP मॉडल में थीं और 2023 तक केवल 12% परियोजनाओं ने वित्तीय रूप से सफलता पाई।
  • वायबिलिटी गैप फंडिंग: सामाजिक अवसंरचना परियोजनाओं के लिए 80% तक सहायता के बावजूद केवल 71 परियोजनाएं स्वीकृत हुईं।
  • नगर निगम बॉन्ड्स: अधिकांश नगर निकायों की क्रेडिट रेटिंग कमजोर होने के कारण इनका उपयोग न्यूनतम रहा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 74वां संविधान संशोधन (1992): शहरी स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए किया गया था।
  • Census में शहरी क्षेत्र की परिभाषा: 5,000 से अधिक जनसंख्या, 400 प्रति वर्ग किमी घनत्व, और 75% पुरुष गैर-कृषि कार्यों में संलग्न।
  • 2022 में केरल की शहरी आबादी: 73.19% — भारत में सबसे अधिक।
  • प्रॉपर्टी टैक्स संग्रह: GDP का केवल 0.15%, जबकि शहरी निधियों का यह प्रमुख स्रोत होना चाहिए।

शहरी विकास के लिए सात सिफारिशें

  1. परियोजना का जीवनचक्र सोच के साथ डिज़ाइन: संचालन, रखरखाव और नागरिक संतुष्टि को योजना में प्रारंभ से शामिल किया जाए।
  2. निजी निवेश को जोखिम मुक्त बनाना: आंशिक क्रेडिट गारंटी, राजस्व घाटा संरक्षण जैसी सुविधाएं जोड़ी जाएं।
  3. शहरों की राजस्व जुटाने की क्षमता बढ़ाना: प्रॉपर्टी टैक्स, यूजर फीस आदि को पारदर्शी और कुशलता से लागू करना आवश्यक।
  4. क्षमता निर्माण: टियर-2 और टियर-3 शहरों में तकनीकी, वित्तीय और प्रशासनिक विशेषज्ञता का अभाव दूर किया जाए।
  5. नवाचार को बढ़ावा: वाटर-सिक्योर सिटी, ज़ीरो-वेस्ट जैसे थीम आधारित चैलेंज विंडो के ज़रिए प्रदर्शन आधारित फंडिंग।
  6. उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता: स्मार्ट वॉटर सिस्टम, वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स, TOD हब्स को बढ़ावा देना।
  7. संस्थागत स्पष्टता: UCF का संचालन एक प्रभावी, प्रतिक्रियाशील संस्था द्वारा किया जाए जो सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों से सहज संवाद कर सके।

निष्कर्ष

यदि भारत को 2047 तक ‘विकसित राष्ट्र’ बनना है, तो उसके शहरों को पहले ‘बैंक योग्य’, ‘रहने योग्य’ और ‘लचीला’ बनाना होगा। ‘अर्बन चैलेंज फंड’ एक ऐसी पहल है जो शहरी नियोजन और वित्तीय मॉडल को एक नई सोच के साथ पुनर्परिभाषित कर सकती है। यह केवल अवसंरचना नहीं, बल्कि शहरी सोच को बदलने की दिशा में एक निर्णायक कदम हो सकता है।

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