भारतीय मेंढकों में पहली बार दर्ज हुए अनोखे बचाव व्यवहार

भारतीय मेंढकों में पहली बार दर्ज हुए अनोखे बचाव व्यवहार

दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भारतीय मेंढकों की दो प्रजातियों में पहली बार दुर्लभ और विपरीत किस्म के शिकारियों से बचाव व्यवहार (Anti-predator behaviour) को दस्तावेजीकृत किया है। एक प्रजाति जहां हमला होने पर चीखती है और काट भी लेती है, वहीं दूसरी अपनी देह को ऊपर उठा कर शत्रु को डराने की कोशिश करती है। यह शोध “Herpetological Notes” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसे दिल्ली विश्वविद्यालय की ‘सिस्टेमैटिक्स लैब’ के प्रमुख सरीसृप विज्ञानी प्रोफेसर एस.डी. बिजू के नेतृत्व में किया गया।

अरुणाचल की रात की संरक्षक: अपातानी हॉर्न्ड टोड

अरुणाचल प्रदेश में पाई जाने वाली “अपातानी हॉर्न्ड टोड” (Xenophrys apatani) एक निशाचर (रात्रिचर) मेंढक प्रजाति है जो दिन में पत्तियों के समान रंग और आकृति के कारण आसानी से नजर नहीं आती। खतरा महसूस होने पर यह मेंढक अपने शरीर को फुलाता है, एक तीखी आवाज़ निकालता है और आवश्यक होने पर हमलावर को काट भी सकता है। यह आक्रामक व्यवहार पहली बार फील्ड फोटोग्राफी के दौरान देखा गया और बाद में प्रयोगात्मक रूप से प्रमाणित किया गया।

केरल की दिनचर्या की योद्धा: द्विवर्णी मेंढक

दूसरी ओर, पश्चिमी घाट में केरल स्थित “द्विवर्णी मेंढक” (Clinotarsus curtipes) एक दिनचर प्रजाति है, जो आमतौर पर जंगल के पत्तों के बीच पाई जाती है। खतरा महसूस होते ही यह मेंढक अपने दोनों पाँवों को सीधा ऊपर उठा कर शरीर को ऊपर की ओर झुका लेता है, जिससे वह बड़ा और डरावना प्रतीत होता है। यह व्यवहार जंगल में सीधे अवलोकन के दौरान देखा गया और बाद में कृत्रिम खतरे की स्थिति में दोहराया गया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में अब तक 419 मेंढक प्रजातियों की पहचान हो चुकी है।
  • वैश्विक स्तर पर 7,876 मेंढक प्रजातियाँ ज्ञात हैं, जिनमें से केवल 650 में ही इस प्रकार के बचाव व्यवहार दर्ज किए गए हैं।
  • “Xenophrys apatani” केवल अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है — यानी यह एक स्थानिक (endemic) प्रजाति है।
  • “Clinotarsus curtipes” पश्चिमी घाट का निवासी है — यह क्षेत्र जैव विविधता के वैश्विक हॉटस्पॉट्स में गिना जाता है।

प्रकृति के रहस्यों की अछूती परत

प्रोफेसर बिजू का कहना है कि “भारतीय मेंढकों की प्राकृतिक जीवनशैली और व्यवहार के बारे में अभी बहुत कुछ अनजाना और अनदिखा है।” इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय वन्यजीवों में रक्षा की अनूठी रणनीतियाँ मौजूद हैं, जिनका अब तक वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण नहीं हुआ था।

Originally written on October 31, 2025 and last modified on October 31, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *