भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 2025: समुद्री क्षेत्र में भारत के कायाकल्प की आधारशिला

भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था में बंदरगाहों की भूमिका लंबे समय से रीढ़ की हड्डी जैसी रही है। जैसे-जैसे देश वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है, वैसे-वैसे इसकी समुद्री अवसंरचना का महत्व और अधिक बढ़ गया है। इस दिशा में अगस्त 2025 में संसद द्वारा पारित भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 2025 एक ऐतिहासिक सुधार है, जिसने 1908 के औपनिवेशिक युग के बंदरगाह कानून की जगह एक समकालीन, एकीकृत और विकासोन्मुखी ढांचा प्रदान किया है।
अधिनियम की आवश्यकता और पृष्ठभूमि
भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे समुद्री तट पर 12 प्रमुख और 200 से अधिक गैर-प्रमुख बंदरगाह हैं। इनमें से अधिकांश व्यापार, रोजगार, औद्योगिक कॉरिडोर और शहरी विकास के केन्द्र हैं। वर्तमान में भारत का लगभग 95% निर्यात-आयात व्यापार मात्रा के आधार पर और 70% मूल्य के आधार पर समुद्री मार्ग से होता है। पुराने अधिनियम की सीमाओं को दूर कर नया अधिनियम न केवल संचालन में पारदर्शिता लाता है, बल्कि राज्यों को सशक्त बनाकर सहकारी संघवाद को भी बढ़ावा देता है।
प्रमुख सुधार और प्रावधान
भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 2025 अनेक संरचनात्मक और प्रशासनिक सुधार लाता है, जिससे बंदरगाह क्षेत्र वैश्विक मानकों के अनुरूप बन सके।
बंदरगाह अधिकारियों की नियुक्ति और दायित्व
नए अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक बंदरगाह पर सरकार द्वारा नियुक्त ‘कनजरवेटर’ को ‘पोर्ट ऑफिसर’ घोषित किया गया है। उसे पोतों की आवाजाही, शुल्क वसूली, आपदा नियंत्रण, क्षति मूल्यांकन और जुर्माने के निर्धारण जैसे अधिकार प्राप्त होंगे।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में कुल 12 प्रमुख और 200+ गैर-प्रमुख बंदरगाह हैं।
- भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 को समाप्त कर नया अधिनियम 2025 में लाया गया।
- देश के 95% आयात-निर्यात व्यापार की मात्रा समुद्र के माध्यम से होती है।
- ‘मैरिटाइम स्टेट डेवलपमेंट काउंसिल’ को अधिनियम के अंतर्गत वैधानिक दर्जा दिया गया है।