पश्चिमी घाट की ऊंची पहाड़ियों में दुर्लभ ड्रैगनफ्लाई प्रजाति Crocothemis erythraea की पुष्टि

पश्चिमी घाट की ऊंची पहाड़ियों में दुर्लभ ड्रैगनफ्लाई प्रजाति Crocothemis erythraea की पुष्टि

दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट की ऊँचाई वाली पर्वतीय श्रंखलाओं में ड्रैगनफ्लाई की एक दुर्लभ प्रजाति Crocothemis erythraea की उपस्थिति को ओडोनेटोलॉजिस्ट्स (ड्रैगनफ्लाई विशेषज्ञों) ने हाल ही में पुनः पुष्टि की है। यह खोज न केवल क्षेत्र की जैव विविधता की समृद्धता को उजागर करती है, बल्कि पिछले भ्रम और गलत पहचान की स्थिति को भी स्पष्ट करती है।

कौन हैं ये दो प्रजातियाँ?

भारत में Crocothemis वंश की दो प्रमुख प्रजातियाँ हैं:

  • Crocothemis servilia: यह प्रजाति समतल और निम्नभूमि क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाई जाती है।
  • Crocothemis erythraea: यह दुर्लभ प्रजाति आमतौर पर हिमालय और यूरोप के ठंडे, उच्च स्थानों पर पाई जाती है।

पश्चिमी घाट में पूर्व में C. erythraea की उपस्थिति की कुछ रिपोर्ट्स थीं, लेकिन उनके समर्थन में ठोस सबूत नहीं होने के कारण उन्हें खारिज कर दिया गया था। इसका मुख्य कारण था कि यह प्रजाति C. servilia से बहुत मिलती-जुलती है, जिससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती थी।

पुनः खोज की प्रक्रिया

2018 में मुन्‍नार की ऊँचाई वाली पहाड़ियों में वार्षिक जीव-जंतु सर्वेक्षण के दौरान एक संभावित C. erythraea की तस्वीर ली गई। हालांकि, पहचान को लेकर संदेह के चलते इसे बाद के वैज्ञानिक चेकलिस्ट से हटा दिया गया। इसके बाद 2019 से 2023 के बीच वागामोन, राजाकुमारी, पम्पडुम शोला और परंबिकुलम जैसे कई उच्च स्थलों पर फील्ड सर्वेक्षण किए गए।
इन अभियानों में वैज्ञानिकों ने नमूनों को एकत्र किया और मॉर्फोलॉजिकल (शारीरिक) और मॉलिक्यूलर (आणविक) विश्लेषण किया। विशिष्ट पहचान के लिए नर जननांगों की रचना, विशेषकर हैम्यूल की बनावट, का गहन अध्ययन किया गया। डीएनए बारकोडिंग द्वारा पुष्टि हुई कि इन नमूनों का आनुवंशिक संरचना हिमालय में पाए गए C. erythraea से मेल खाता है।

उच्च और निम्न क्षेत्र में वितरण

  • C. erythraea: केवल 550 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले शीतल क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • C. servilia: 600 मीटर से कम ऊँचाई वाले गर्म, निम्न भूमि क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाई जाती है।

जलवायु और जैव-विकास संबंधी पहलू

शोधकर्ताओं का मानना है कि C. erythraea ने प्लाइस्टोसीन हिम युग (Pleistocene Ice Age) के दौरान दक्षिण भारत में अपना प्रसार किया, जब वैश्विक तापमान कम था और समशीतोष्ण प्रजातियाँ दक्षिण की ओर फैल सकीं। जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती गई, ये प्रजातियाँ ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में सिमट गईं और वहां आइसोलेट होकर जीवित रहीं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Crocothemis erythraea पहले यूरोप, हिमालय और मध्य एशिया में ही रिकॉर्ड की गई थी।
  • यह प्रजाति अब पश्चिमी घाट के 550 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में भी पाई गई है।
  • शोधकर्ताओं ने मुन्‍नार, परंबिकुलम, वागामोन आदि में फील्ड सर्वे और डीएनए परीक्षण कर इसकी पुष्टि की।
  • यह अध्ययन International Journal of Odonatology में प्रकाशित हुआ है।

यह खोज पश्चिमी घाट की जैव विविधता की एक नई परत को उजागर करती है और इस पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण की आवश्यकता को और अधिक बल प्रदान करती है। साथ ही यह हमें यह भी सिखाती है कि वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी (जैसे डीएनए बारकोडिंग) मिलकर किस प्रकार पारिस्थितिकीय रहस्यों को उजागर कर सकते हैं।

Originally written on August 30, 2025 and last modified on August 30, 2025.

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