परमाणु दायित्व कानून संशोधन पर विवाद: ऊर्जा सुरक्षा बनाम जन सुरक्षा

भारत की ऊर्जा नीति में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को लेकर एक बार फिर तीखी बहस की संभावना बन रही है। केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि वह संसद के मानसून सत्र में “परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962” और “नाभिकीय क्षति हेतु दीवानी दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010” में संशोधन प्रस्ताव ला सकती है। यह प्रस्ताव ऊर्जा सुरक्षा, विदेशी निवेश और आम नागरिकों की सुरक्षा के बीच संतुलन की चुनौती को पुनः उजागर करता है।
CLNDA और AEA संशोधन: प्रस्ताव क्या है?
CLNDA 2010 के तहत परमाणु संयंत्रों में दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदारी संयंत्र ऑपरेटर की होती है, लेकिन विपक्ष के दबाव में इसमें एक प्रावधान जोड़ा गया था जिसमें सप्लायर (उपकरण आपूर्तिकर्ता) को भी दायित्व में शामिल किया गया। इसी कारण पश्चिमी देशों की कंपनियों ने भारत में निवेश से परहेज किया। अब सरकार चाहती है कि इस दायित्व को फिर से केवल ऑपरेटर तक सीमित किया जाए, जिससे विदेशी निवेश आकर्षित हो सके।
वहीं, AEA 1962 में प्रस्तावित संशोधन से निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी जाएगी, जो अभी पूरी तरह सार्वजनिक क्षेत्र (NPCIL) तक सीमित है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक विरोध
2010 में CLNDA को लेकर कांग्रेस की अगुआई वाली UPA सरकार और तत्कालीन विपक्ष — BJP और वाम दलों — के बीच तीखी बहस हुई थी। उस समय भोपाल गैस त्रासदी, फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना, और गल्फ ऑयल स्पिल जैसे उदाहरणों को याद कर विपक्ष ने दायित्व की सीमा बढ़ाने की मांग की थी।
अब कांग्रेस ने फिर आपत्ति दर्ज की है कि नया संशोधन नागरिकों की सुरक्षा से समझौता करता है और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के हित में है, खासकर फ्रांस और अमेरिका की। कांग्रेस का आरोप है कि यह कदम मोदी सरकार की विदेश नीति से जुड़ा है, जिससे आगामी अंतरराष्ट्रीय दौरों से पहले सकारात्मक संदेश दिया जा सके।
ऊर्जा उत्पादन में परमाणु की भूमिका
भारत में कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का योगदान अभी केवल 3% से थोड़ा अधिक है। देश में 24 परमाणु संयंत्रों की कुल स्थापित क्षमता 8.8 गीगावॉट है। 2000 तक 10 GW के लक्ष्य को अभी तक भी नहीं छुआ गया है। अब सरकार ने 2047 तक 100 GW की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। इसमें Small Modular Reactors (SMRs) जैसे तकनीकी नवाचार शामिल हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- CLNDA (2010) भारत में परमाणु दुर्घटनाओं के लिए मुआवजा देने वाला पहला कानून है।
- Atomic Energy Act (1962) भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन और उपयोग को नियंत्रित करता है; इसमें अब तक निजी क्षेत्र की कोई भूमिका नहीं है।
- भोपाल गैस त्रासदी (1984) भारत की सबसे गंभीर औद्योगिक दुर्घटना थी, जिसके दुष्परिणाम आज भी चर्चा में रहते हैं।
- India-US Civil Nuclear Deal (2008) ने भारत को वैश्विक परमाणु बाजार से जोड़ा, लेकिन CLNDA में दायित्व प्रावधानों के कारण निवेश में रुकावट आई।
निष्कर्ष: एक संतुलित राष्ट्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता
भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और जलवायु प्रतिबद्धताओं को देखते हुए परमाणु ऊर्जा का विस्तार आवश्यक है। लेकिन यह तभी संभव है जब सुरक्षा और पारदर्शिता के मानकों में कोई समझौता न हो। विपक्ष को केवल विरोध की भूमिका में न रहकर एक सूचित, राष्ट्रहितकारी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इस विषय पर व्यापक बहस समय की मांग है — ताकि देश ऊर्जा में आत्मनिर्भर बन सके, साथ ही नागरिकों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके।