नौरादेही अभयारण्य बनेगा मध्यप्रदेश का तीसरा चीता स्थल
 
मध्यप्रदेश सरकार ने नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य को राज्य का तीसरा चीता पुनर्वास स्थल घोषित किया है, जो कुनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधी सागर अभयारण्य के बाद परियोजना चीता का अगला चरण है। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घोषणा की कि नामीबिया से लाए गए चीतों को नौरादेही में छोड़ा जाएगा, जिससे मध्य भारत में चीता संरक्षण के लिए एक विविध और सुरक्षित पारिस्थितिक नेटवर्क विकसित किया जा सके।
चीता पुनर्वास की योजना और उद्देश्य
कुनो और गांधी सागर में पहले से चल रही प्रबंधन प्रक्रियाओं और कार्यात्मक चीता आबादी के अनुभव के आधार पर नौरादेही को चुना गया है। यह निर्णय चीता आवासों का विविधीकरण करने, कुनो पर दबाव कम करने और चंबल–विंध्य परिदृश्य में एक मेटा-पॉपुलेशन प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
पहले चरण में नामीबिया से चीतों का स्थानांतरण किया जाएगा, जो भारत और अफ्रीका के बीच पहले से हुए अंतर-सरकारी समझौतों के अंतर्गत होगा। चीतों को बड़े अनुकूलन बाड़ों में ‘सॉफ्ट-रिलीज़’ किया जाएगा और इसके बाद चरणबद्ध तरीके से खुले जंगल में छोड़ा जाएगा।
सुरक्षा और निगरानी के लिए सेटेलाइट-जीपीएस कॉलर, चौबीसों घंटे निगरानी दल, शिकार प्रजातियों का संवर्धन, पशु-चिकित्सा सहायता और मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया टीमें नियुक्त की जाएंगी।
अन्य संरक्षण गतिविधियाँ और प्रजाति विनिमय
मुख्यमंत्री ने इंदिरा सागर जलाशय में चार मादा और दो नर मगरमच्छों को छोड़ा, जिन्हें भोपाल के वन विहार से लाया गया था। यह जलचरों के संरक्षण कार्यक्रम का हिस्सा है। इसके साथ ही असम के साथ घड़ियाल विनिमय की योजना भी बनाई जा रही है, जिससे प्रजनन लाइनें मजबूत की जा सकें।
यह सभी उपाय मांसाहारी प्रजातियों के पुनर्वास के साथ-साथ नदी पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को भी बहाल करने में सहायक होंगे।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- नौरादेही मध्यप्रदेश का तीसरा चीता पुनर्वास स्थल बना, कुनो और गांधी सागर के बाद।
- चीतों को नामीबिया से लाया जाएगा; चरणबद्ध ‘सॉफ्ट-रिलीज़’ प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
- छह मगरमच्छों को इंदिरा सागर जलाशय में छोड़ा गया; असम के साथ घड़ियाल विनिमय प्रस्तावित।
- ‘प्रोजेक्ट चीता’ का उद्देश्य है मध्य भारत में एक सुदृढ़ मेटा-पॉपुलेशन तैयार करना।
ओंकारेश्वर अभयारण्य और संरक्षण योजनाएँ
ओंकारेश्वर वन्यजीव अभयारण्य (61,407 हेक्टेयर) के लिए अधिसूचना प्रक्रिया अंतिम चरण में है, जो खंडवा और देवास जिलों में फैला हुआ है। यह क्षेत्र नर्मदा के समीप स्थित है और भविष्य में इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा देने की योजना है।
राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित संरक्षण पैकेज में शिकार प्रजातियों का संवर्धन, बाड़ों का पुनर्निर्माण, बाड़ सुरक्षा, त्वरित प्रतिक्रिया इकाइयाँ और सामुदायिक जागरूकता अभियान शामिल हैं। इसका उद्देश्य इको-टूरिज्म और मानव-वन्यजीव सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना है।
मध्यप्रदेश, जो पहले से ही देश में बाघों की राजधानी के रूप में जाना जाता है, अब चीतों के लिए भी एक मजबूत और संरक्षित पारिस्थितिकी तंत्र तैयार कर रहा है। यह पहल जैव विविधता संरक्षण के साथ-साथ पर्यटन और स्थानीय रोजगार को भी प्रोत्साहन देगी।
