नागालैंड विश्वविद्यालय का अनोखा शोध: कैसे स्टिंगलेस मधुमक्खियाँ बढ़ा रही हैं फसल की उपज और गुणवत्ता

नागालैंड विश्वविद्यालय के कीटविज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने अपने 10 वर्षों के शोध में यह सिद्ध किया है कि स्टिंगलेस मधुमक्खियाँ (Stingless Bees) न केवल उच्च गुणवत्ता वाली औषधीय शहद का उत्पादन करती हैं, बल्कि फसलों की उपज और बीज की गुणवत्ता को भी कई गुना बढ़ा सकती हैं। इन मधुमक्खियों की खास बात यह है कि ये डंक रहित होती हैं, जिससे इनका उपयोग परागण में बिना किसी डर के किया जा सकता है।
प्रमुख प्रजातियाँ और शोध के निष्कर्ष
शोध में दो प्रमुख प्रजातियों—Tetragonula iridipennis और Lepidotrigona arcifera—को सबसे प्रभावी परागणकर्ता पाया गया। इन मधुमक्खियों के उपयोग से विशेष रूप से मिर्च (Capsicum chinense और Capsicum annuum) की फसल में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई:
- किंग चिली में फलों का बनना (fruit set) 21% से बढ़कर 29.46% हुआ।
- सामान्य मिर्च में यह वृद्धि 7.42% थी।
- बीज का भार (seed weight), जो अंकुरण का संकेतक है, 60.47% तक बढ़ा।
प्रयोग में शामिल फसलें
स्टिंगलेस मधुमक्खियों के परागण प्रभाव का परीक्षण निम्नलिखित फसलों पर किया गया:
- सब्जियाँ: टमाटर, बैंगन, ककड़ी, सफेद पेठा, कद्दू
- फल: तरबूज, ड्रैगन फ्रूट, आम, अमरूद, आँवला, बेर
इन प्रयोगों के दौरान प्राप्त शुद्ध शहद ने किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत भी प्रदान किया।
पारंपरिक पालन से वैज्ञानिक तकनीक तक
पूर्वोत्तर भारत, विशेष रूप से नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में स्टिंगलेस मधुमक्खियों का परंपरागत पालन लंबे समय से होता आ रहा है। इस शोध के तहत इन मधुमक्खियों को जंगलों से लाकर वैज्ञानिक तरीके से हाइव में पाला गया और उन्हें खुले खेतों व ग्रीनहाउस में परागण के लिए रखा गया।
कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव
शोधकर्ता डॉ. अविनाश चौहान ने बताया कि यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहाँ परंपरागत मधुमक्खियों का प्रयोग कठिन है। इसके अलावा, अन्य वन्य परागणकर्ताओं जैसे Apis dorsata, Apis florea, halictid व syrphid मधुमक्खियों के संरक्षण पर भी ज़ोर दिया गया है।
भविष्य की दिशा
इस शोध को आगे बढ़ाते हुए वैज्ञानिक अब मधुमक्खी पालन की तकनीकों को और बेहतर बना रहे हैं। भविष्य में स्टिंगलेस मधुमक्खी शहद के औषधीय गुणों और कम शोधित फसलों जैसे पैशन फ्रूट व चौ चौ पर भी अध्ययन किया जाएगा।