‘दिशा अभियान’: बौद्धिक विकलांगता से ग्रसित छात्रों के लिए महाराष्ट्र की ऐतिहासिक पहल

समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए महाराष्ट्र सरकार ने ‘दिशा अभियान’ नामक एक अभिनव कार्यक्रम को सफलतापूर्वक राज्य के 453 विशेष विद्यालयों में लागू कर दिया है। यह कार्यक्रम विशेष रूप से बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसे जय वकील फाउंडेशन द्वारा विकसित तथा नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द एम्पावरमेंट ऑफ पर्सन्स विद इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटीज़ (NIEPID) द्वारा अनुमोदित किया गया है।
समावेशी शिक्षा में पहला राज्य बना महाराष्ट्र
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि महाराष्ट्र देश का पहला ऐसा राज्य बना है, जिसने बौद्धिक रूप से अक्षम छात्रों के लिए एक समान और मानकीकृत पाठ्यक्रम को राज्यव्यापी स्तर पर अपनाया है। यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत 2047” दृष्टिकोण से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य एक समावेशी और आत्मनिर्भर समाज का निर्माण करना है।
80 वर्षों के अनुभव पर आधारित पाठ्यक्रम
1944 में स्थापित जय वकील फाउंडेशन ने अपने आठ दशकों के अनुभव और शोध के आधार पर यह पाठ्यक्रम तैयार किया है। इस पाठ्यक्रम में निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल हैं:
- वैश्विक मानकों पर आधारित विशेष शिक्षा पद्धतियाँ
- शोध-सिद्ध शिक्षण विधियाँ
- बौद्धिक क्षमता के विभिन्न स्तरों के अनुसार अनुकूलन
- जीवन कौशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए विशेष मॉड्यूल
NIEPID द्वारा प्रमाणित यह पाठ्यक्रम राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरता है।
उद्देश्य और दूरदर्शिता
‘दिशा अभियान’ के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहती है:
- विशेष विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में एकरूपता लाना
- छात्रों की कार्यात्मक शिक्षा, सामाजिक कौशल और रोज़गार योग्यताओं में सुधार
- समाज में समावेशिता को बढ़ावा देना और स्वीकृति का माहौल बनाना
- छात्रों को आत्मनिर्भर और गरिमामयी जीवन जीने के योग्य बनाना
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- दिशा अभियान की शुरुआत: महाराष्ट्र, 2024
- विकासकर्ता संस्था: जय वकील फाउंडेशन (स्थापना: 1944)
- प्रमाणन संस्था: NIEPID (राष्ट्रीय स्तर की संस्था)
- लाभान्वित विद्यालयों की संख्या: 453 विशेष विद्यालय
- प्रमुख घटक: जीवन कौशल, व्यावसायिक प्रशिक्षण, समावेशी पाठ्यक्रम
‘दिशा अभियान’ न केवल एक शैक्षिक सुधार है, बल्कि यह सामाजिक चेतना और समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल भी है। यह कार्यक्रम उन छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने का माध्यम बनता है, जिन्हें समाज लंबे समय से उपेक्षित करता रहा है। महाराष्ट्र का यह साहसिक कदम पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।