दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की तैयारी: जानिए पूरा मामला

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास से नकदी मिलने के आरोपों के बाद अब उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया जल्द ही लोकसभा में शुरू की जा सकती है। भारतीय संसद के इतिहास में यह एक गंभीर और दुर्लभ संवैधानिक प्रक्रिया है, जो न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता से जुड़ी है।

क्या है मामला?

मार्च 2025 में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की रिपोर्ट सामने आई थी। सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस समिति ने इस मामले की जांच कर आरोपों की पुष्टि की और इसे “दुराचरण” (misconduct) बताया। जस्टिस वर्मा ने इस समिति को “असंवैधानिक” करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
23 जुलाई को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा उपसभापति हरिवंश और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस मुद्दे पर उच्च स्तरीय बैठक की। बताया जा रहा है कि जल्द ही एक वैधानिक समिति गठित की जा सकती है जो जज वर्मा के खिलाफ महाभियोग की संभावनाओं की जांच करेगी।

महाभियोग की प्रक्रिया क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 218 के तहत किसी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट के जज को केवल दो आधारों पर हटाया जा सकता है: “सिद्ध दुराचार (proved misbehaviour)” और “असामर्थ्य (incapacity)”।
महाभियोग प्रक्रिया के प्रमुख चरण:

  • पहला चरण: लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में 50 सांसदों द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है।
  • दूसरा चरण: अध्यक्ष या सभापति प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।
  • तीसरा चरण: यदि स्वीकार किया जाता है, तो एक तीन-सदस्यीय जांच समिति गठित की जाती है:

    • सुप्रीम कोर्ट का एक जज
    • किसी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
    • एक “प्रख्यात विधिज्ञ”
  • चौथा चरण: समिति साक्ष्य एकत्र करती है, गवाहों से पूछताछ करती है और जज के बयान लेती है।
  • पाँचवाँ चरण: रिपोर्ट तैयार कर संसद के संबंधित सदन में प्रस्तुत की जाती है।
  • छठा चरण: यदि रिपोर्ट में दोष सिद्ध होता है, तो दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होना चाहिए।
  • अंतिम चरण: राष्ट्रपति द्वारा आदेश जारी कर न्यायाधीश को पद से हटाया जाता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अब तक भारतीय न्यायपालिका में केवल एक जज (जस्टिस वी. रमास्वामी) के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया लोकसभा में पारित हुई, लेकिन राज्यसभा में असफल रही।
  • “जजेज इंक्वायरी एक्ट, 1968” के तहत यह पूरी प्रक्रिया संचालित होती है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में आंतरिक जांच प्रक्रिया (in-house mechanism) को औपचारिक रूप दिया।
  • 2014 में MP की एक महिला जज द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत पर इस प्रक्रिया की पुनः समीक्षा हुई थी।

न्यायपालिका की आंतरिक जांच प्रक्रिया

यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की पहल पर 1999 में बनी थी ताकि ऐसे मामलों में कार्रवाई हो सके जो महाभियोग की सीमा तक न पहुंचे, लेकिन फिर भी न्यायिक गरिमा को ठेस पहुंचाएं। इसमें मुख्य न्यायाधीश की भूमिका केंद्रीय होती है, और जांच समिति न्यायाधीश को सलाह भी दे सकती है या प्रधानमंत्री को महाभियोग की अनुशंसा कर सकती है।
जस्टिस वर्मा के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया गया है कि उन्हें कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए। साथ ही प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को समिति की सिफारिशों से अवगत कराया गया है।
इस संवेदनशील मामले में आगे की कार्रवाई भारत की न्यायिक जवाबदेही की दिशा में एक निर्णायक क्षण बन सकती है। यदि महाभियोग प्रस्ताव आगे बढ़ता है, तो यह भारतीय लोकतंत्र में न्यायिक शुचिता को बनाए रखने के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जाएगा।

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