दिल्ली में सभी आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर संकट गहराया

दिल्ली के आवारा कुत्तों को दो माह के भीतर पकड़कर हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने नगर निगम (एमसीडी) और विशेषज्ञों के सामने असंभव जैसी चुनौती खड़ी कर दी है। शहर में न तो स्थायी डॉग शेल्टर हैं, न ही आवारा कुत्तों की अद्यतन गणना, और न ही पर्याप्त संसाधन। अनुमान के मुताबिक दिल्ली में करीब दस लाख आवारा कुत्ते हैं, लेकिन उन्हें रखने और खिलाने की व्यवस्था लगभग न के बराबर है।

स्थायी शेल्टर की कमी और क्षमता की समस्या

एमसीडी वर्तमान में 20 एनजीओ साझेदारी वाले एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) केंद्र चलाता है, जहां कुत्तों को नसबंदी के बाद अधिकतम 10 दिन तक रखा जाता है और फिर उनके क्षेत्र में छोड़ दिया जाता है। अगर इन्हें स्थायी शेल्टर में बदला भी जाए तो इनकी क्षमता महज 3,500–4,000 कुत्तों की होगी, जो कुल आबादी का 4% भी नहीं है।

जनसंख्या और खर्च का भारी बोझ

दिल्ली में आखिरी डॉग जनगणना 2009 में हुई थी, जिसमें संख्या 5.6 लाख थी। 2019 में विधानसभा की एक समिति ने इसे 8 लाख आंका और अब अनुमान करीब 10 लाख तक पहुंच गया है। सिर्फ खाने का खर्च ही लगभग 3 करोड़ रुपये प्रतिदिन या 1,000 करोड़ रुपये वार्षिक होगा। इसमें वेतन, परिवहन, चिकित्सा, और निर्माण खर्च शामिल नहीं हैं।

पकड़ने और रखने की व्यावहारिक कठिनाइयाँ

मौजूदा नियमों के अनुसार नसबंदी के समय प्रत्येक कुत्ते को 12 वर्ग फुट और स्थायी आवास के लिए 40–45 वर्ग फुट स्थान चाहिए। आधी आबादी को भी मानक के अनुसार रखने के लिए सैकड़ों एकड़ जमीन और हजारों बाड़ों की आवश्यकता होगी। फिलहाल, 12 प्रशासनिक जोनों में प्रत्येक में केवल दो कुत्ता-पकड़ने वाली वैन हैं, जो बड़ी संख्या में पकड़ने के लिए बेहद अपर्याप्त हैं।

कानूनी और मानवीय पहलू

एबीसी (डॉग्स) नियम, 2023 के अनुसार, सामुदायिक कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उनके क्षेत्र में ही छोड़ा जाना चाहिए, न कि स्थायी रूप से स्थानांतरित किया जाना चाहिए। पशु कल्याण संगठनों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में कुत्तों को पकड़कर बंद करना न केवल अमानवीय होगा बल्कि बीमारी, झगड़ों और मौतों को भी बढ़ावा देगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • दिल्ली में आखिरी डॉग जनगणना वर्ष 2009 में हुई थी।
  • एबीसी (डॉग्स) नियम, 2023 के तहत कुत्तों को नसबंदी के बाद उनके मूल क्षेत्र में छोड़ना अनिवार्य है।
  • दिल्ली में अनुमानित आवारा कुत्तों की संख्या करीब 10 लाख है।
  • एक कुत्ते को स्थायी आवास के लिए औसतन 40–45 वर्ग फुट जगह की आवश्यकता होती है।

अंततः, विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का आठ सप्ताह का समयसीमा न तो संसाधनों के हिसाब से व्यावहारिक है और न ही कानूनी ढांचे के अनुरूप। ऐसे किसी भी प्रयास से मानवीय संकट और कानूनी चुनौतियाँ बढ़ने का खतरा है, जबकि दीर्घकालिक समाधान के लिए निरंतर नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रम ही सबसे प्रभावी उपाय हो सकते हैं।

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