तिरुमला की पहाड़ियों से मिली नई छिपकली प्रजाति: Hemiphyllodactylus venkatadri
 
भारत की सरीसृप जैव विविधता में एक महत्वपूर्ण वृद्धि के तहत जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों ने आंध्र प्रदेश के शेषाचलम बायोस्फीयर रिजर्व में स्थित तिरुमला पर्वत श्रृंखला से एक नई पतली छिपकली (स्लेंडर गेको) प्रजाति की खोज की है। इस नई प्रजाति को Hemiphyllodactylus venkatadri नाम दिया गया है, जो स्थानीय धार्मिक महत्त्व वाले ‘वेंकटाद्रि’ पर्वत से प्रेरित है—जहाँ ‘वेंकट’ का अर्थ होता है ‘पापों का नाश करने वाला’ और ‘अद्रि’ का अर्थ है ‘पहाड़’।
प्रजातिगत विशेषताएँ और वैज्ञानिक महत्त्व
Hemiphyllodactylus venkatadri भारत में इस वंश की दूसरी ज्ञात प्रजाति है; इससे पहले आंध्र प्रदेश में H. arakuensis दर्ज की गई थी। आनुवंशिक विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि इस प्रजाति का अपने निकटतम संबंधियों—H. jnana, H. nilgiriensis, और H. peninsularis—से 9.7% से 12.9% तक आनुवंशिक अंतर है, जिससे यह एक विशिष्ट प्रजाति के रूप में प्रमाणित होती है।
मुख्य पहचान विशेषताएँ: 
- 12 से 16 ठोड़ी की स्केल्स (chin scales)
- 6 से 8 प्रीक्लोएकल पोर्स और 5 से 7 फेमोरल पोर्स
- दोनों पैरों पर विशिष्ट “2-2-2-2” लेमेलर पैटर्न
- पोर्स के बीच बिना पोर्स वाली स्केल्स का अंतर
यह छिपकली लगभग 881 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक चंदन वृक्षारोपण में, पेड़ की छाल के नीचे पाई गई थी, जो एक उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन क्षेत्र से घिरा हुआ है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- प्रजाति नाम: Hemiphyllodactylus venkatadri
- खोज स्थान: तिरुमला पर्वत श्रृंखला, शेषाचलम बायोस्फीयर रिजर्व, आंध्र प्रदेश
- जैविक समूह: स्लेंडर गेको (Hemiphyllodactylus वंश)
- यह आंध्र प्रदेश में खोजी गई दूसरी स्लेंडर गेको प्रजाति है
- आनुवंशिक भिन्नता: 9.7% से 12.9% निकटतम प्रजातियों से
- प्रकाशन: अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका ‘Herpetozoa’
जैव विविधता में योगदान और संरक्षण की दिशा
ZSI की निदेशक डॉ. धृति बनर्जी ने इस खोज की सराहना करते हुए कहा कि पूर्वी घाट जैव भौगोलिक क्षेत्र अब भी भारत के सबसे कम अन्वेषित क्षेत्रों में से एक है। प्रत्येक नई प्रजाति की खोज हमें भारत की समृद्ध जैव विविधता को समझने में और अधिक गहराई प्रदान करती है।
यह अध्ययन ज़ेडएसआई के हैदराबाद स्थित फ्रेशवाटर बायोलॉजी रीजनल सेंटर, कोलकाता स्थित रेप्टिलिया अनुभाग, और ओडिशा की फकीर मोहन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। शोध दल ने यह स्पष्ट किया कि इस खोज से पूर्वी घाट क्षेत्र की पारिस्थितिकीय महत्ता और जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता पर बल मिलता है।
