ट्रम्प, ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष विराम की नाटकीय राजनीति

मध्य पूर्व में एक बार फिर युद्ध और शांति के बीच का संघर्ष दुनिया की नज़र में रहा, जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान और इज़राइल के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त कराने का दावा किया। लेकिन उनका यह दावा कुछ ही घंटों में संदेह और अस्थिरता के साए में डूब गया। यह घटनाक्रम न केवल भू-राजनीतिक समीकरणों को उजागर करता है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में शक्तिशाली नेताओं की मनोदशा और महत्वाकांक्षा की जटिलता को भी दर्शाता है।
संघर्ष विराम की घोषणा और ट्रम्प की प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रम्प ने जब घोषणा की कि “12 डे वॉर” समाप्त हो गया है और दोनों पक्षों ने ‘पीस’ कहकर युद्धविराम की पुष्टि की है, तो यह विश्व समुदाय के लिए एक आश्चर्यजनक मोड़ था। उन्होंने ईरान और इज़राइल की प्रशंसा करते हुए इसे उनकी “साहस, धैर्य और समझदारी” का परिणाम बताया। लेकिन यह उत्साह दिन ढलते-ढलते चिंता और निराशा में बदल गया।
शाम होते-होते ट्रम्प ने बार-बार सोशल मीडिया पर दोनों देशों से युद्धविराम का सम्मान करने की अपील की, विशेष रूप से इज़राइल को कड़ी चेतावनी दी कि यदि उसने बमबारी जारी रखी तो यह “बड़ी उल्लंघना” होगी। उनकी निराशा का आलम तब स्पष्ट हुआ जब उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में स्पष्ट भाषा में कहा कि दोनों पक्ष “नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।”
नेतन्याहू की रणनीति और इज़राइल की सैन्य सफलता
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए यह युद्ध एक रणनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिकी सैन्य सहयोग से उन्होंने ईरान के परमाणु केंद्रों — फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान — पर हमला कर वहां की क्षमताओं को काफी नुकसान पहुंचाया। लंबे समय से नेतन्याहू अमेरिकी प्रशासन से ‘बंकर बस्टर’ बमों की मांग कर रहे थे, और ट्रम्प से उन्हें वह सहयोग मिला जिसकी उन्हें वर्षों से तलाश थी।
नेतन्याहू के इस अभियान का उद्देश्य ईरान की परमाणु और बैलिस्टिक क्षमताओं को समाप्त करना था, हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह पूरी तरह सफल रहा है। लेकिन यह साफ है कि नेतन्याहू ने ट्रम्प के साथ मिलकर ईरान पर सैन्य और कूटनीतिक दबाव बढ़ा दिया है।
अयातुल्ला खामेनेई की चुनौतियाँ
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के सामने अब बड़ी रणनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है। उनके सबसे प्रमुख सहयोगी संगठन — हिजबुल्ला और हमास — कमजोर हो चुके हैं, और सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से हटना पड़ा है। कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी भी मारे जा चुके हैं, जिससे खामेनेई की सत्ता पर संकट गहराया है।
हालांकि ट्रम्प ने ईरानी परमाणु कार्यक्रम को “पूरी तरह से नष्ट” कर देने का दावा किया है, लेकिन अमेरिकी रक्षा विभाग ने अधिक संतुलित और सतर्क रवैया अपनाया है। यह भी संभावना है कि ईरान ने हमले से पहले अपने कुछ महत्वपूर्ण परमाणु संसाधनों को छिपा दिया हो।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- डोनाल्ड ट्रम्प 2017 से 2021 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे और उनका कार्यकाल कई विवादास्पद निर्णयों से भरा रहा।
- इज़राइल और ईरान के बीच तनाव दशकों पुराना है, जिसका मुख्य कारण ईरान का परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय प्रभाव है।
- ‘बंकर बस्टर बम’ अत्यंत गहराई में स्थित सैन्य ठिकानों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
- ईरान में सर्वोच्च नेता का पद राष्ट्रपति से ऊपर होता है और वह सैन्य, धार्मिक और राजनीतिक निर्णयों में अंतिम अधिकार रखते हैं।
इस घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ईरान और इज़राइल के बीच युद्धविराम कितना भी भव्य तरीके से घोषित किया जाए, जब तक दोनों पक्षों के मूल उद्देश्य अधूरे हैं, तब तक स्थायी शांति एक दूर की कौड़ी बनी रहेगी। ट्रम्प की अस्थायी सफलता और नेतन्याहू की रणनीति भविष्य की दिशा तय करेगी, लेकिन यह संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ — यह केवल विराम में है।