टाइगर रिजर्व के बाहर बाघों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार की नई योजना

मानव-बाघ संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने “टाइगर्स आउटसाइड टाइगर रिजर्व” नामक एक पायलट योजना को मंजूरी दी है। यह योजना उन क्षेत्रों पर केंद्रित होगी जहां बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बाहर रहकर मानव बस्तियों के समीप विचरण करते हैं, जिससे संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं। पर्यावरण मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA) की कार्यकारी समिति ने इस योजना के लिए सैद्धांतिक स्वीकृति दी है।

योजना का उद्देश्य और कार्यान्वयन

इस पायलट योजना के अंतर्गत प्रारंभिक रूप से 10 राज्यों के 80 वन प्रभागों को चिन्हित किया गया है, जहां बार-बार मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं सामने आई हैं। योजना के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • बाघों और अन्य सह-शिकारियों की निगरानी और संरक्षण के लिए तकनीकी हस्तक्षेप
  • वन अधिकारियों की तकनीकी क्षमताओं का सशक्तिकरण
  • नागरिक समाज और विशेषज्ञ पशु चिकित्सकों के साथ सहयोग
  • शाकाहारी जीवों की संख्या में वृद्धि (prey base augmentation)

इस योजना को राज्य वन विभागों के मुख्य वन्यजीव वार्डनों द्वारा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के सहयोग से लागू किया जाएगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में लगभग 30% बाघ संरक्षित टाइगर रिजर्व से बाहर रहते हैं।
  • 2020 से 2024 के बीच बाघों से संघर्ष में 382 लोगों की जान गई, जिनमें 2022 में ही 111 मौतें हुईं।
  • यह योजना मार्च 2024 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में पहली बार सामने आई थी।
  • योजना का कुल प्रस्तावित व्यय वर्ष 2026-27 तक ₹88 करोड़ है।
  • CAMPA फंड का उपयोग पहले ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और प्रोजेक्ट चीता जैसी योजनाओं में भी किया जा चुका है।

संघर्ष-प्रवण क्षेत्र और चुनौतियां

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र के चंद्रपुर (ताडोबा रिजर्व के पास), उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और दुधवा, राजस्थान के रणथंभौर, और केरल के वायनाड जैसे क्षेत्र टाइगर रिजर्व के बाहर बाघों की सक्रियता के प्रमुख उदाहरण हैं। इन क्षेत्रों में गन्ने के खेतों और अन्य कृषि भूमि में बाघों की उपस्थिति से ग्रामीणों और मवेशियों पर खतरा बढ़ता है।
बाघों के क्षेत्रीय स्वभाव के चलते वे अन्य शिकारी जीवों जैसे तेंदुओं को भी बाहर धकेल देते हैं, जिससे संघर्ष की संभावना और बढ़ जाती है।

निष्कर्ष

मानव-बाघ संघर्ष भारत के वन्यजीव संरक्षण के समक्ष एक प्रमुख चुनौती है। “टाइगर्स आउटसाइड टाइगर रिजर्व” योजना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है जो संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रहने वाले बाघों के लिए भी निगरानी, संरक्षण और बेहतर व्यवस्थाओं की शुरुआत करेगी। यदि यह पायलट योजना सफल होती है, तो इसे देशभर में बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है, जिससे वन्यजीव संरक्षण और मानव सुरक्षा दोनों में संतुलन स्थापित किया जा सकेगा।

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