टाइगर कॉरिडोर पर यू-टर्न: NTCA ने 2014 की सीमित सूची को ही मान्यता दी

हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट में टाइगर कॉरिडोर की पहचान हेतु कई वैज्ञानिक मानकों और अध्ययनों को स्वीकारने की बात कहने के मात्र एक महीने के भीतर, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) ने बड़ा यू-टर्न लेते हुए अब केवल 2014 में चिन्हित 32 “लीस्ट कॉस्ट पाथवे” को ही आधिकारिक टाइगर कॉरिडोर मानने की घोषणा की है। यह कदम पर्यावरण संरक्षण से अधिक औद्योगिक परियोजनाओं को सरलता से अनुमति देने की दिशा में एक प्रशासनिक झुकाव के रूप में देखा जा रहा है।

टाइगर कॉरिडोर क्यों महत्वपूर्ण हैं?

टाइगर कॉरिडोर बाघों के प्राकृतिक आवासों को जोड़ने वाले मार्ग होते हैं, जो उनके आवागमन, आनुवांशिक विविधता और दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत, टाइगर रिज़र्व या उनके कॉरिडोर के आसपास भूमि उपयोग वाली परियोजनाओं को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (SC-NBWL) की स्वीकृति लेनी होती है।

विवाद की पृष्ठभूमि और बदलता रुख

  • पूर्व रुख: जुलाई 2024 में, NTCA ने बॉम्बे हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी को कॉरिडोर की पहचान में महत्वपूर्ण बताया था — जैसे कि वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) की 2016 और 2021 की रिपोर्ट्स, टाइगर कंजर्वेशन प्लान्स (TCPs), और ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन (AITE) डेटा।
  • हालिया स्पष्टीकरण: 22 अगस्त 2025 को NTCA द्वारा सभी राज्यों को भेजे गए पत्र में अब केवल 2014 की “लीस्ट कॉस्ट पाथवे” रिपोर्ट और TCPs में दर्ज कॉरिडोर को ही मान्यता दी गई है। इसमें WII और AITE जैसे वैज्ञानिक डेटा को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।

औद्योगिक परियोजनाओं को लाभ?

इस सीमित परिभाषा से जिन कंपनियों को लाभ मिलने की संभावना है, उनमें वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (दुर्गापुर कोल माइंस) और लॉयड्स मेटल्स एंड एनर्जी (सुरजगढ़ आयरन ओर माइंस) प्रमुख हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर और गढ़चिरौली जिलों में प्रस्तावित इन परियोजनाओं के लिए अब SC-NBWL की मंजूरी की आवश्यकता नहीं रह सकती, यदि वे 2014 की सूची से बाहर माने जाएं।

वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिक्रिया

WII सहित कई विशेषज्ञों ने इस कदम पर आश्चर्य और चिंता जताई है। NTCA की 2014 रिपोर्ट स्वयं कहती है कि “इसमें दर्शाए गए कॉरिडोर न्यूनतम आवश्यकता हैं” और “वैकल्पिक मार्ग भी मौजूद हैं जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।” इस संदर्भ में, नागपुर स्थित LRC फाउंडेशन द्वारा किए गए हालिया सर्किटस्केप मॉडलिंग में 192 संभावित कॉरिडोरों की पहचान की गई है, जो 30 टाइगर रिज़र्व और 150 से अधिक संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NTCA की 2014 की रिपोर्ट में केवल 32 टाइगर कॉरिडोर चिन्हित किए गए थे।
  • वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत, टाइगर कॉरिडोर के क्षेत्र में कोई भी विकास परियोजना SC-NBWL की अनुमति के बिना नहीं हो सकती।
  • AITE (All India Tiger Estimation) हर चार साल में होता है और यह देशभर में बाघों के वितरण का सबसे सटीक आंकड़ा देता है।
  • WII की 2016 और 2021 की रिपोर्ट्स ने विदर्भ क्षेत्र के कई नए बाघ कॉरिडोर उजागर किए थे।

NTCA के इस अचानक बदले रुख से टाइगर संरक्षण की रणनीति पर गंभीर प्रश्न खड़े हो गए हैं। यह निर्णय केवल वन्यजीव संरक्षण के मूल उद्देश्य को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि इससे देशभर में कई परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी मिलने में आसानी हो सकती है, जिससे पारिस्थितिकी पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हाईकोर्ट इस मुद्दे पर क्या निर्णय लेता है।

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