झारखंड में आदिवासी असंतोष: हो जनजाति के ‘मनकी-मुंडा’ प्रणाली पर बढ़ता प्रशासनिक हस्तक्षेप

9 सितंबर 2025 को झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में हो जनजाति के सैकड़ों आदिवासियों ने ज़िला उपायुक्त (DC) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। उनका आरोप था कि जिला प्रशासन उनके पारंपरिक ‘मनकी-मुंडा’ स्वशासन तंत्र में हस्तक्षेप कर रहा है। यद्यपि प्रशासन ने इन आरोपों को अफवाह बताते हुए खारिज किया, लेकिन इस घटनाक्रम ने आदिवासी स्वायत्तता और राज्य प्रशासन के बीच लंबे समय से चले आ रहे संतुलन पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

मनकी-मुंडा प्रणाली की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कोल्हान क्षेत्र की हो जनजाति सदियों से विकेन्द्रित पारंपरिक शासन व्यवस्था में विश्वास रखती आई है। इस व्यवस्था में प्रत्येक गांव का नेतृत्व ‘मुंडा’ करता है, जो वंशानुगत होता है और गांव के सामाजिक-राजनीतिक मामलों का निपटारा करता है। 8-15 गांवों का समूह ‘पीर’ कहलाता है, जिसका नेतृत्व ‘मनकी’ करते हैं।
ब्रिटिश शासन से पहले यह प्रणाली पूर्ण रूप से आंतरिक स्वशासन आधारित थी — बिना किसी कराधान या बाहरी प्रभुता के। लेकिन 1765 में कंपनी को बंगाल, बिहार और झारखंड में ‘दीवानी’ अधिकार मिलने के बाद, कर संग्रह और ज़मींदारी प्रथा लागू हुई। इससे आदिवासियों के साथ भूमि को लेकर टकराव बढ़ा, जिसके कारण 1821-22 में हो विद्रोह और 1831-32 में कोल विद्रोह हुआ।

ब्रिटिश रणनीति: ‘विल्किंसन नियम’ और समझौता

ब्रिटिश प्रशासन ने दमन में असफल होने के बाद कैप्टन थॉमस विल्किंसन को कोल्हान गवर्नमेंट एस्टेट (KGE) का राजनीतिक एजेंट नियुक्त किया। 1833 में उन्होंने 31 नियम बनाए, जिन्हें ‘विल्किंसन रूल्स’ कहा गया। इसके माध्यम से मनकी-मुंडा प्रणाली को औपचारिक मान्यता दी गई और पारंपरिक नेताओं को ब्रिटिश शासन में सहायक बनाया गया।
हालांकि इसका उद्देश्य आदिवासी स्वायत्तता बनाए रखना था, परंतु इससे बाहरी लोगों (दिक्कुओं) का आगमन और निजी संपत्ति की अवधारणा का प्रवेश हुआ। इसने आदिवासियों को ‘रैयत’ बना दिया, जो राज्य के अधीन ज़मीन के किरायेदार माने गए।

स्वतंत्रता के बाद की स्थिति

1947 में KGE समाप्त कर दिया गया, लेकिन विल्किंसन नियम आज भी प्रभाव में हैं। 2000 में पटना उच्च न्यायालय ने इन्हें केवल ‘पुरानी परंपरा’ माना, परंतु इन्हें तब तक लागू रखने की अनुमति दी जब तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था न हो। 2021 में झारखंड सरकार ने पारंपरिक ‘न्याय पंचायत’ प्रणाली को राजस्व और भूमि विवादों में मान्यता दी।

वर्तमान विवाद: सामाजिक समावेशन बनाम पारंपरिक विरासत

हालिया प्रदर्शन के मूल में कुछ SC और OBC समुदायों की शिकायतें थीं कि मुंडा जातीय रूप से भेदभाव कर रहे हैं या अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे। इनमें से एक शिकायत गोपे समुदाय से जुड़ी थी, जिन्हें पारंपरिक पशुपालन कार्यों से अलग व्यवसाय करने से रोका गया।
इसके बाद जिला प्रशासन ने पारदर्शिता लाने के लिए नौ बिंदुओं का एक निर्देश जारी किया, जिससे पारंपरिक नेताओं की भूमिका स्पष्ट की गई। हालाँकि इसे अफवाहों के ज़रिए गलत तरीके से यह प्रचारित किया गया कि DC मनकी-मुंडा को हटाने की योजना बना रहा है।

मनकी-मुंडा प्रणाली में सुधार की माँग

समस्या का एक पक्ष यह भी है कि यह व्यवस्था पूरी तरह वंशानुगत है — मुंडा या मनकी का पद पिता से पुत्र को मिलता है, जिससे कई बार अनपढ़ और प्रशासनिक जानकारी से अज्ञानी व्यक्ति नेतृत्व में आ जाते हैं। इस कारण से अब कई हो युवाओं का मानना है कि पारंपरिक प्रणाली को बनाए रखते हुए उसमें सुधार किए जाने चाहिए — जैसे कि चुनाव द्वारा नेतृत्व का चयन या शिक्षित सहायक नियुक्त करना।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • मनकी-मुंडा प्रणाली झारखंड की सबसे पुरानी स्वशासन व्यवस्थाओं में से एक है।
  • विल्किंसन नियम, 1833 में लागू हुए, किसी भी आदिवासी समुदाय की पहली औपचारिक शासन संहिता मानी जाती है।
  • कोल विद्रोह (1831-32) ब्रिटिश कर नीति और ज़मींदारी प्रणाली के खिलाफ आदिवासी आक्रोश का प्रमुख उदाहरण था।
  • ‘दिक्कू’ शब्द झारखंड में गैर-आदिवासी बाहरी लोगों के लिए प्रयुक्त होता है।

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