ज़ंगेज़ुर कॉरिडोर विवाद और भारत-ईरान-अर्मेनिया की त्रिपक्षीय रणनीति

हाल ही में अर्मेनिया की सुरक्षा परिषद के सचिव ने भारत का एक शांत दौरा किया, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की। इस बैठक में भारत के द्वारा हाल ही में संपन्न “ऑपरेशन सिंदूर” के प्रभावों पर चर्चा की गई। यह दौरा भारत की दक्षिण काकेशस क्षेत्र में बढ़ती भूमिका को दर्शाता है, जहाँ भारत, ईरान और अर्मेनिया की त्रिपक्षीय भागीदारी एक नई रणनीतिक दिशा ले रही है।
त्रिपक्षीय सहयोग का बढ़ता महत्व
भारत और अर्मेनिया के बीच 2020 से रक्षा साझेदारी स्थापित हो चुकी है, जिसमें अब ईरान भी एक महत्वपूर्ण माध्यम बनकर उभरा है। अर्मेनिया को भारत से हथियार आपूर्ति का कुछ हिस्सा ईरान के माध्यम से पहुँचा है, जिससे इस त्रिपक्षीय सहयोग की आधारशिला बन गई है। यह सहयोग केवल सैन्य दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापारिक गलियारों और परिवहन मार्गों को भी सुचारू बनाए रखने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।
ज़ंगेज़ुर कॉरिडोर का विवाद
अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच ज़ंगेज़ुर कॉरिडोर को लेकर तनाव बना हुआ है। यह कॉरिडोर अज़रबैजान को उसके स्वायत्त क्षेत्र नाखीचेवन से जोड़ता है, जो अर्मेनिया के सूनीक प्रांत से होकर गुजरता है। अज़रबैजान चाहता है कि यह एक ‘कॉरिडोर’ हो जिसमें अर्मेनिया की कोई सीमा या सीमा शुल्क की भूमिका न हो, जबकि अर्मेनिया इसे केवल एक सड़क मार्ग के रूप में देखता है।
इस कॉरिडोर का तुर्की और अज़रबैजान के लिए रणनीतिक महत्व अत्यधिक है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन इसे अपने देश की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए आवश्यक मानते हैं। अगर यह कॉरिडोर लागू होता है, तो तुर्की को अज़रबैजान, ईरान, कैस्पियन सागर और मध्य एशिया तक भूमि मार्ग मिल जाएगा, जिससे उसकी क्षेत्रीय प्रभावशीलता बढ़ेगी।
ईरान की आपत्ति और भारत का हित
ईरान इस कॉरिडोर का तीव्र विरोध कर रहा है क्योंकि इससे उसका अर्मेनिया से सीधा संपर्क कट सकता है। ईरान की अज़रबैजान से लगी सीमा पर ज़ंगेज़ुर कॉरिडोर का निर्माण उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता और संचार मार्गों पर प्रभाव डाल सकता है। ईरानी रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया है कि ईरान अर्मेनिया के साथ अपनी ऐतिहासिक सीमा पर कोई अतिक्रमण नहीं होने देगा।
भारत के लिए भी यह कॉरिडोर एक चुनौती है। भारत का चाबहार पोर्ट और अर्मेनिया में निवेश उसे ब्लैक सी और यूरोप तक एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है, जो सुज़ नहर की अस्थिरता से बचा सकता है। ज़ंगेज़ुर कॉरिडोर के लागू होने से यह रास्ता खतरे में पड़ सकता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अर्मेनिया और भारत के बीच 2020 से रक्षा सहयोग जारी है।
- ज़ंगेज़ुर कॉरिडोर अर्मेनिया के सूनीक प्रांत से होकर गुजरता है।
- नाखीचेवन अज़रबैजान का एक स्वायत्त क्षेत्र है, जो तुर्की से जुड़ता है।
- चाबहार पोर्ट भारत-ईरान साझेदारी का हिस्सा है, जो भारत को ब्लैक सी तक मार्ग देता है।
- तुर्की और अज़रबैजान IMEC (इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर) के विरोधी हैं।
भारत को दक्षिण काकेशस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, विशेषकर जब तुर्की और अज़रबैजान दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। ईरान और अर्मेनिया के साथ मिलकर भारत न केवल अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और कनेक्टिविटी को भी सुनिश्चित कर सकता है। यही समय है जब भारत को क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करते हुए अपनी भू-राजनीतिक नीति को स्पष्ट दिशा देनी चाहिए।