जलवायु भौतिक जोखिम (Climate Physical Risks – CPRs) की बढ़ती चुनौती और भारत का जलवायु भविष्य

भारत का जलवायु भविष्य अब किसी भविष्यवाणी या किस्मत के भरोसे नहीं, बल्कि बढ़ते तापमान, अनिश्चित मानसून और तीव्र होती प्राकृतिक आपदाओं में लिखा जा रहा है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 80% से अधिक आबादी उन जिलों में रहती है जो जलवायु-जनित आपदाओं के ख़तरे में हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि अब यह घटनाएं अलग-थलग नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक स्थिरता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय सुरक्षा पर सीधा प्रभाव डाल रही हैं।
जलवायु भौतिक जोखिम (Climate Physical Risks – CPRs) की बढ़ती चुनौती
जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाएं अब अधिक बार और अधिक गंभीर रूप में सामने आ रही हैं। CPRs न केवल बाढ़, हीटवेव और चक्रवात जैसे तात्कालिक झटकों को शामिल करते हैं, बल्कि लंबे समय तक चलने वाले तनावों जैसे मानसून की अस्थिरता और सूखे को भी कवर करते हैं। मौजूदा चेतावनी प्रणालियाँ केवल तात्कालिक नुकसान को रोकने में सहायक होती हैं, जबकि CPRs के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण आवश्यक है।
मिटिगेशन बनाम अनुकूलन (Adaptation)
जहां वैश्विक जलवायु नीति का एक हिस्सा ग्रीनहाउस गैसों में कटौती (मिटिगेशन) पर केंद्रित है, वहीं अनुकूलन (Adaptation) की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ रही है। भारत जैसे देशों के लिए यह हमेशा प्राथमिकता रही है, लेकिन अब यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देश भी वनों की आग, हीटवेव और तूफानों के कारण अपनी क्षमता की परीक्षा में लगे हैं।
अनुकूलन में निवेश: लाभकारी और आवश्यक
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, अनुकूलन में प्रत्येक $1 का निवेश $4 का लाभ देता है। यह लाभ केवल आपदा के बाद होने वाले खर्चों को कम करने तक सीमित नहीं, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में भी सहायक होता है।
CPRs की त्रि-आधारी परिभाषा: खतरा, जोखिम और भेद्यता
जलवायु जोखिम का सटीक आकलन तीन कारकों पर आधारित होता है:
- Hazard (खतरा): बाढ़, चक्रवात, हीटवेव जैसी आपदाएं
- Exposure (जोखिम): किन समुदायों, परिसंपत्तियों या अवसंरचनाओं पर प्रभाव पड़ेगा
- Vulnerability (भेद्यता): किसी तंत्र की सहनशीलता और पुनःस्थापन क्षमता
इन तीनों का संयोजन ही किसी क्षेत्र के वास्तविक जलवायु जोखिम को दर्शाता है।
भारत में CPR मूल्यांकन: बिखरा हुआ परिदृश्य
हालाँकि भारत के पास IIT गांधीनगर के बाढ़ मानचित्र, मौसम विभाग की भेद्यता एटलस, और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की रूपरेखाएं हैं, फिर भी एक एकीकृत प्रणाली का अभाव है। इससे नीति निर्माण, सार्वजनिक निवेश और निजी क्षेत्र की योजना बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव और भारत की पहल
अमेरिका, ब्रिटेन और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में CPR मूल्यांकन की राष्ट्रीय रूपरेखाएं हैं, जो नीति और वित्त दोनों को दिशा देती हैं। भारत ने भी पेरिस समझौते के अनुच्छेद 7 के तहत अपने राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (NAP) की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। 2023 में भारत ने अपनी पहली Adaptation Communication रिपोर्ट प्रस्तुत की और अब एक व्यापक NAP रिपोर्ट तैयार कर रहा है, जिसमें 9 विषयगत क्षेत्रों और जिला-स्तरीय विवरण को शामिल किया गया है।
भविष्य की राह: एकीकृत, भारत-केंद्रित CPR टूल
भारत को एक ऐसा CPR मूल्यांकन टूल विकसित करने की आवश्यकता है जो स्थानीय जलवायु मॉडलिंग, विस्तृत जोखिम आकलन, केंद्रीकृत डेटा भंडार, और वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित हो। यह टूल न केवल सरकारी नीति निर्माण में सहायक होगा, बल्कि निजी क्षेत्र को अपने संचालन और निवेश योजनाओं को जलवायु जोखिम के अनुसार अनुकूलित करने में भी मदद करेगा।