जलवायु दबाव के बीच भारत का बढ़ता कार्बन भार

जलवायु दबाव के बीच भारत का बढ़ता कार्बन भार

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की नई रिपोर्ट “Emissions Gap Report 2025” के अनुसार, भारत ने वर्ष 2023–24 में विश्व में सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन वृद्धि दर्ज की। यह आँकड़ा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है, क्योंकि देश अब जलवायु नीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के दोहरे दबाव में आ सकता है।

भारत की बढ़ती उत्सर्जन दर और वैश्विक चिंता

UNEP की रिपोर्ट “Off Target” के अनुसार, भारत ने बीते वर्ष में 165 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में छोड़ीं — जो किसी भी देश द्वारा हुई सबसे अधिक वार्षिक वृद्धि है। इस सूची में भारत के बाद चीन और रूस का स्थान रहा, जबकि प्रतिशत में सबसे तीव्र वृद्धि इंडोनेशिया में दर्ज की गई।
हालाँकि भारत की प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दर आज भी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है, लेकिन कुल उत्सर्जन में इस वृद्धि ने पर्यावरण संतुलन और सतत विकास के लक्ष्यों को लेकर नई बहस छेड़ दी है।

नीति और समयसीमा में चूक

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत ने 30 सितंबर 2025 तक अपनी नई राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान योजना (NDC 3.0) प्रस्तुत नहीं की। यह योजना पेरिस समझौते के तहत प्रत्येक देश के जलवायु कार्यों की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। भारत की इस देरी ने भविष्य के अंतरराष्ट्रीय मंचों, विशेष रूप से दिसंबर में ब्राज़ील के बेलेम में होने वाले COP30 शिखर सम्मेलन, में उस पर अतिरिक्त दबाव बनाने की संभावना को जन्म दिया है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत ने 2023–24 में GHG उत्सर्जन में 165 मिलियन टन की वृद्धि दर्ज की — वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक।
  • UNEP की रिपोर्ट के अनुसार, सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 2.8°C तक बढ़ सकता है।
  • भारत 30 सितंबर 2025 तक अपनी NDC 3.0 योजना जमा करने में असफल रहा।
  • G20 देशों में से केवल यूरोपीय संघ ने अपने उत्सर्जन में कमी दर्ज की।

विशेषज्ञों की राय और जलवायु वित्त विवाद

पर्यावरण विशेषज्ञों ने इन निष्कर्षों को भारत के लिए “वेक-अप कॉल” बताया है। सतत संपदा जलवायु फाउंडेशन के संस्थापक हर्जीत सिंह के अनुसार, भारत “जलवायु न्याय की दुविधा” में फंसा हुआ है — प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम होते हुए भी कुल उत्सर्जन के लिए आलोचना झेल रहा है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जलवायु वित्त की असफलता एक बड़ा कारण है, क्योंकि विकासशील देशों से डीकार्बोनाइजेशन की अपेक्षा की जा रही है, लेकिन उन्हें पर्याप्त वित्तीय और तकनीकी सहायता नहीं दी जा रही।
इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस के प्रोफेसर अंजल प्रकाश ने कहा कि भारत को अक्षय ऊर्जा के तेज प्रसार, कोयले से तेज़ी से दूरी और मीथेन नियंत्रण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे — और इसके लिए वैश्विक स्तर पर पूर्वानुमेय और पर्याप्त जलवायु वित्त जरूरी है।

विकास और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन

भारत की बढ़ती उत्सर्जन दर उसकी आर्थिक प्रगति और ऊर्जा मांग की सीधी परिणति है। एक ओर जहाँ सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों को तेजी से अपनाया जा रहा है, वहीं कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन अभी भी देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।
UNEP ने भारत से अपेक्षा की है कि वह आर्थिक विकास को जलवायु नीति से जोड़ते हुए, सतत और न्यायसंगत विकास का वैश्विक मॉडल प्रस्तुत करे। COP30 में भारत की भूमिका और रुख, वैश्विक जलवायु विमर्श को गहराई से प्रभावित कर सकता है।

Originally written on November 7, 2025 and last modified on November 7, 2025.

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