जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश से भीषण बाढ़: जलवायु परिवर्तन और भौगोलिक कारकों की चेतावनी

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के एक दूरस्थ गांव छसोटी में गुरुवार को अचानक आई बाढ़ ने कम से कम 65 लोगों की जान ले ली, जबकि 50 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। यह गांव मचैल माता मंदिर की ओर जाने वाला अंतिम मोटर योग्य गांव है। इस दर्दनाक घटना ने न केवल प्रशासनिक तैयारी पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पश्चिमी हिमालय की संवेदनशीलता को लेकर भी गंभीर चिंता जताई है।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ती आपदाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि एकल आपदा को सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जोड़ना वैज्ञानिक रूप से कठिन हो सकता है, परंतु यह undeniable है कि पिछले वर्षों में अत्यधिक वर्षा, अचानक बाढ़ और जंगलों में आग की घटनाएं अधिक बार और तीव्र रूप में सामने आई हैं। जम्मू-कश्मीर भी इस वैश्विक रुझान से अछूता नहीं रहा।
2010 से 2022 के बीच जम्मू-कश्मीर में 2,863 अत्यधिक मौसम घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 552 लोगों की मृत्यु हुई। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के एक अध्ययन के अनुसार, इस अवधि में सबसे अधिक घटनाएं गरज-तूफान और भारी वर्षा की थीं, परंतु भारी हिमपात सबसे अधिक घातक साबित हुआ, जिससे 182 लोगों की जान गई। किश्तवाड़, अनंतनाग, गांदरबल और डोडा जिलों में फ्लैश फ्लड से सबसे अधिक मौतें दर्ज की गईं।
बाढ़ और बारिश के पीछे के वैज्ञानिक कारण
तीन मुख्य कारणों को जम्मू-कश्मीर में बार-बार हो रही इन आपदाओं के लिए जिम्मेदार माना गया है — तापमान में वृद्धि, पश्चिमी विक्षोभ की बदलती प्रकृति और क्षेत्र की पहाड़ी भू-आकृति।
1. बढ़ता तापमान: पश्चिमी हिमालय में औसत तापमान भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में दो गुना तेजी से बढ़ रहा है। इसके चलते वातावरण में जलवाष्प की मात्रा भी बढ़ जाती है, जिससे भारी वर्षा की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि होती है। साथ ही, इस क्षेत्र की हिमनदों की तेजी से पिघलन ने ग्लेशियल झीलों की संख्या में वृद्धि की है, जो अचानक बाढ़ का कारण बन सकती हैं।
2. पश्चिमी विक्षोभ का बदलता स्वरूप: पहले ये प्रणाली मुख्यतः शीतकाल में सक्रिय रहती थी, लेकिन अब वर्षभर प्रभाव डालने लगी है। यह परिवर्तन समुद्र के तापमान में वृद्धि और हवा की नमी की मात्रा में वृद्धि के कारण हो रहा है, जिससे पूरे हिमालयी क्षेत्र में तेज वर्षा और बाढ़ की आशंका बढ़ गई है।
3. टोपोग्राफी (भू-आकृति): जम्मू-कश्मीर की पहाड़ी बनावट, जहां नमी भरी हवाएं ऊंचाई पर चढ़कर तीव्र वर्षा करती हैं, अत्यधिक वर्षा और भूस्खलन की संवेदनशीलता को और बढ़ा देती है। यह ओरोग्राफिक वर्षा का प्रभाव है, जो इस क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील बनाता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2010 से 2022 तक जम्मू-कश्मीर में 2,863 चरम मौसम घटनाएं दर्ज की गईं।
- भारी हिमपात से सबसे अधिक 182 मौतें हुईं, जबकि फ्लैश फ्लड से 119 और भारी बारिश से 111 जानें गईं।
- किश्तवाड़ जिला फ्लैश फ्लड से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है।
- पश्चिमी हिमालय में तापमान वृद्धि की दर भारतीय उपमहाद्वीप की तुलना में दोगुनी है।
किश्तवाड़ की त्रासदी ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन अब एक दूर की चेतावनी नहीं, बल्कि वर्तमान का संकट है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए केवल आपातकालीन उपाय ही पर्याप्त नहीं होंगे; हमें दीर्घकालिक नीति, जलवायु अनुकूलन रणनीति और सतत विकास की ओर कदम बढ़ाने होंगे। साथ ही, स्थानीय समुदायों को अधिक सशक्त बनाना और वैज्ञानिक पूर्वानुमान प्रणालियों को बेहतर करना अनिवार्य होगा, ताकि भविष्य की त्रासदियों को टाला जा सके।