चेन्नई में अफ्रीकी विशाल घोंघे का संकट: सार्वजनिक स्वास्थ्य और पारिस्थितिकीय संतुलन पर खतरा

चेन्नई और उसके आसपास के क्षेत्रों में हाल ही में अफ्रीकी विशाल घोंघा (Lissachatina fulica) की बढ़ती उपस्थिति ने विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। यह घोंघा न केवल कृषि के लिए घातक कीट माना जाता है, बल्कि यह ऐसे परजीवियों का वाहक भी है जो मानव मस्तिष्क में सूजन जैसी घातक बीमारियां उत्पन्न कर सकते हैं।

चेन्नई में घोंघे की पुष्टि और उसके खतरे

सितंबर से नवंबर 2024 के बीच चेन्नई के अर्बन और सेमी-अर्बन क्षेत्रों में किए गए सर्वेक्षण में सेंट थॉमस माउंट, तिरुसुलम और पेरुंगलाथुर की पहाड़ियों में इस घोंघे की उपस्थिति दर्ज की गई। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह घोंघा Angiostrongylus cantonensis और A. costaricensis जैसे परजीवी नेमाटोड्स का वाहक होता है, जो मानवों में ईोसिनोफिलिक मैनिंजियोएन्सेफलाइटिस (मस्तिष्क संक्रमण) और पेट संबंधी बीमारियां फैला सकते हैं।
बारिश और बाढ़ के दौरान, जब ये घोंघे तेजी से फैलते हैं और जल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं, तब यह खतरा और भी बढ़ जाता है। चेन्नई, जो हर साल मानसून में जलभराव से जूझता है, ऐसे संक्रमणों के लिए अत्यंत संवेदनशील हो जाता है।

वैश्विक स्तर पर फैला घोंघा और भारत में इसका इतिहास

Lissachatina fulica को विश्व की 100 सबसे खतरनाक आक्रामक प्रजातियों में शामिल किया गया है। यह पूर्वी अफ्रीका की मूल निवासी प्रजाति है, लेकिन अब यह एशिया, अमेरिका और अफ्रीका सहित कई महाद्वीपों में फैल चुकी है।
भारत में इसकी शुरुआत 1847 में मानी जाती है, जब इसे कोलकाता के एक बगीचे में छोड़ा गया था। तब से यह घोंघा तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल सहित कई राज्यों में फैल चुका है। 1984 के एक अध्ययन में भी चेन्नई, चिदंबरम, कोयंबटूर और चेंगलपेट में इसकी उपस्थिति दर्ज की गई थी।
यह घोंघा 500 से अधिक पौधों की प्रजातियों को खा सकता है और यह फसलें, उद्यान और प्राकृतिक वनस्पतियों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। इसकी तेज़ प्रजनन क्षमता और प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता इसे अत्यधिक आक्रामक बनाती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अफ्रीकी विशाल घोंघा (Lissachatina fulica) को दुनिया की सबसे खतरनाक आक्रामक प्रजातियों में गिना जाता है।
  • यह घोंघा Angiostrongylus cantonensis नामक परजीवी का वाहक होता है, जिससे मस्तिष्क में संक्रमण हो सकता है।
  • भारत में इसकी उपस्थिति पहली बार 1847 में कोलकाता में दर्ज की गई थी।
  • चेन्नई में इसकी वर्तमान उपस्थिति सेंट थॉमस माउंट, तिरुसुलम और पेरुंगलाथुर क्षेत्रों में पाई गई है।

चेन्नई में इस घोंघे की बढ़ती संख्या न केवल कृषि क्षेत्र के लिए खतरा है, बल्कि यह जनस्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकती है। मानसून के मौसम में जलभराव और शहरी प्रदूषण इस खतरे को कई गुना बढ़ा देते हैं। इसके प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि स्थानीय प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और पर्यावरण संस्थान मिलकर इस संकट से निपटने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

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